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________________ 136 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि वए / अहवा णत्थि पुण्णं ति एवमेयं महब्भयं // 17 // दाणट्ठया य जे पाणा हम्मति तसथावरा / तेसिं सारक्खणट्ठाए तम्हा अस्थि त्ति णो वए // 18 // जेसिं तं उवकप्पंति अण्णपाणं तहाविहं / तेसिं लाभंतराय ति तम्हा णत्थि त्ति णो वए // 19 // जे य दाणं पसंसंति वहमिच्छति पाणिणं / जे य णं पडिसेहंति वित्तिच्छेयं करंति ते // 20 // दुहओ वि ते ण भासंति अत्थि वा णत्थि वा पुणो। आयं रयस्स हेच्चा णं णिव्वाणं पाउणंति ते // 21 // णिव्वाणं परमं बुद्धा णक्खत्ताण व चंदिमा / तम्हा सया जए दंते णिव्वाणं संधए मुणी // 22 // वुज्झमाणाण पाणाणं किच्चंताण सकम्मुणा / आघाइ साहु तं दीवं पइटेसा पवुच्चई // 23 // आयगुत्ते सया दंते छिण्णसोए अणासवे / जे धम्मं सुद्धमक्खाइ पडिपुण्णमणेलिसं। २४॥तमेव अवियाणता अबुद्धा बुद्धमाणिणो बुद्धा मो त्ति य मण्णता अंत एए समाहिए // 25 / / ते य बीओदगं चेव तमुहिस्सा य जं कडं। भोचा झाणं झियायंति अखेयण्णाऽसमाहिया // 26 / जहा ढंका य कंका य कुलला मग्गुका सिही / मच्छेसणं झियायंति झाणं ते कलु साधमं॥२७॥ एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी अणारिया। विसएसणं झियायति कंका वा कलुसाहमा // 28 // सुद्धं मग्गं विराहित्ता इहमेगे उ दुम्मई / उम्मग्गगया दुक्खं घायमेसंति तं तहा // 29 // जहा आसाविणिं णावं जाइअंधो दुरूहिया / इच्छई पारमागंतुं अंतरा य विसीयइ // 30 // एवं तु समणा एगे मिच्छट्ठिी अणारिया / सोयं कसिणमावण्णा आगंतारो महन्मयं // 31 // इमं च धम्ममायाय कासवेण पवेइयं / तरे सोयं महाघोरं अत्तत्ताए परिव्वए / / 32 // विरए गामधम्मेहिं जे केई जगई जगा / तेसिं अत्तवमायाए थाम कुव्वं परिव्वए // 33 / / अइमाणं च मायं च तं परिण्णाय पण्डिए / सव्वमेयं णिराकिंचा णिव्वाणं संधए मुणी // 34 // संधए साहुधम्मं च पावधम्मं णिराकरे / उवहाणवीरिए भिक्खू कोहं माणं ण पत्थए // 35 // जे य बुद्धा अइक्कंता जे य बुद्धा अणागया / संति तेसिं पइट्ठाणं भूयाणं जगई जहा॥३६।। अह णं वयमावण्णं फासा उच्चावया फुसे / ण तेसु विणिहण्णेज्जा वाएण व महागिरी // 37 // संवुडे से महापण्णे धीरे दत्तेसणं चरे / णिबुडे कालमाकंखी एवं केवलिणो मयं // 38 // ति बेमि / / ॥समोसरणं णाम बारसमं अज्झयणं॥ चत्तारि समोसरणाणिमाणि पावादुया जाई पुढो वयंति / किरियं अकिरियं
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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