SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 134 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि कुजा इह जीवियट्ठी चयं ण कुजा सुतवस्सि भिक्खू // 3 // सव्विंदियाभिणिबुडे पयासु चरे मुणी सव्वउ विप्पमुक्के / पासाहि पाणे य पुढो वि सत्ते दुक्खेण अट्टे परितप्पमाणे // 4 // एएसु बाले य पकुव्वमाणे आवट्टई कम्मसु पावएसु / अइवायओ कीरइ पावकम्मं णिउंजमाणे उ करेइ कम्मं // 5 / / आदीणवित्तीव करेइ पावं मंता उ एगंतसमाहिमाहु / बुद्धे समाहीय रए विवेगे पाणाइवाया विरए ठियप्पा // 6 // सव्वं जगं तू समयाणुपेही पियमप्पियं कस्सइ णो करेजा / उहाय दीणो य पुणो विसण्णो संपूयणं चेव सिलोयकामी // 7 / / आहाकडं चेव णिकाममीणे णियामचारी य विसण्णमेसी / इत्थीसु सत्ते य पुढो य बाले परिग्गह चेव पकुव्वमाणे // 8 / / वेराणुगिद्धे .णिचयं करेइ इओ चुए से इहमट्ठदुग्गं / तम्हा उ मेहावि समिक्ख धम्म चरे मुणी सव्वउ विप्पमुक्के // 9 // आयं ण कुजा इह जीवियट्ठी असन्जमाणो य परिव्वएज्जा / णिसम्मभासी य विणीयगिद्धिं हिंसणिय वा ण कह करेजा॥१०|| आहाकडं वा ण णिकामएज्जा णिकामयंते य ण संथवेजा। धुणे उरालं अणुवेहमाणे चिच्चा ण सोयं अणवेक्खमाणो॥११॥ एगत्तमेयं अभिपत्थएजा एवं पमुक्खो ण मुसं ति पास / एसप्पमोक्खो अमुसे वरे वि अकोहणे सच्चरए तवस्सी // 12 // इत्थीसु या आरय मेहुणाओ परिग्गरं चैव अकुबमाणे / उच्चावएस विसएसु ताई णिस्संसयं भिक्खू समाहिपत्ते // 13 / / अरइं रइं च अभिभूय भिक्खू तणाइफासं तह सीयफासं / उण्हं च दंसं चऽहियासएज्जा सुभि व दुभि व तितिक्खएज्जा // 14 // गुत्तो वईए य समाहिपत्तो लेसं समाहर्ट्स परिव्वएज्जा गिह ण छाए ण वि छायए जा संमिस्सभावं पयहे पयासु // 15 / / जे केइ लोगम्मि उ अकिरियआया अण्णे ण पुट्ठा धुयमादिसति / आरम्भसत्ता गढिया य लोए धम्म ण जाणंति विमोक्खहेउं // 16 // पुढो य छंदा इह माणवा उ किरियाकिरीयं च पुढो य वायं / जायस्स बालस्स पकुव्व देहं पवडई वेरमसंजयस्स / / 17 / / आउक्खयं चेव अबुज्झमाणे ममाइ से साहसकारि मंदे अहो य राओ परितप्प. माणे अट्टेसु मूढे अजरामरेव्व // 18 // जहाहि वित्तं पसवो य सव्वं जे बंधवा जे य पिया य मित्ता। लालप्पई से वि य एइ मोहं अण्णे जणा तंसि हरंति वित्तं // 19 // सीहं जहा खुड्डमिगा चरंता दूरे चरंति परिसंकमाणा। एवं तु मेहावि समिक्ख धम्मं दूरेण पावं परिवज्जए जा // 20 // संबुज्झमाणे उ णरे मईमं पावाउ
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy