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________________ सूयगडो सु. 1 अ. 8 131 अंतगस्स / णिधूय कम्मं ण पवंचुवेइ अक्खक्खए वा सगडं त्ति बेमि // 30 // वीरियं णाम अट्रमं अज्झयणं * दुहा वेयं सुयक्खायं वीरियं ति पवुच्चई। किं णु वीरस्स वीरत्तं कहं चेयं पवुचई / / 1 // कम्ममेगे पवेदेति अकम्मं वा वि सुव्वया / एएहिं दोहि ठाणेहिं जेहिं दीसंति मच्चिया / / 2 // पमायं कम्ममाहंसु अप्पमायं तहावरं / तब्भावादेसओ वा वि बालं पण्डियमेव वा // 3 // सत्थमेगे तु सिक्खंता अइवायाय पाणिणं / एगे मंते अहिज्ति पाणभूयविहे डिणो // 4 // मायिणो कटु माया य कामभोगे समारभे / हंता छेत्ता पगभित्ता आयसायाणुगामिणो // 5 // मणसा वयसा चेव कायसा चेव अंतसो / आरओ परओ वा वि दुहा वि य असंजया // 6 // वेराई कुव्वइ वेरी तओ वेरेहि रजई / पावोवगा य आरम्भा दुक्खफासा य अंतसो // 7 / / संपरायं णियच्छति अत्तदुक्कडकारिणो / रागदोसस्सिया बाला पावं कुब्वंति ते बहुं // 8 // एयं सकम्मविरियं बालाणं तु पवेइयं / इत्तो अकम्मविरियं पण्डियाणं सुणेह मे / / 9 / / दविए बंधणुम्मुक्के सव्वओ छिण्णबंधणे। पणोल्ल पावगं कम्मं सलं कंतइ अंतसो // 10 // णेयाउयं सुयक्खायं उवायाय समीहए / भुजो भुज्जो दुहावासं असुहत्तं तहा तहा // 11 / / ठाणी विविहठाणाणि चइस्संति ण संसओ। अणियए अयं वासे णायए हि सुहीहि य // 12 // एवमायाय मेहावी अप्पणी गिद्धिमुद्धरे / आरियं उवसंपज्जे सव्वधम्ममगोवियं // 13 // सहसंमइए णचा धम्मसारं सुणेत्तु वा / समुवट्ठिए उ अणगारे पच्चक्खायपावए // 14 // जं किंचुवक्कम जाणे आउक्खेमस्स अप्पणो / तस्सेव अंतरा खिप्पं सिक्खं सिक्खेज पण्डिए / // 15 // जहां कुम्मे सअंगाई सए देहे समाहरे / एवं पावाई मेहावी अज्झप्पेण समाहरे॥१६॥साहरे हत्थपाए य मणं पंचिंदियाणि य / पावगं च परीणामं भासादोसं च तारिसं॥१७॥ अणु माणं च मायं च तं परिण्णाय पण्डिए। सायागारवणिहुए उवसंते णिहे चरे // 18 // पाणे य णाइवाएज्जा अदिणं पि य णायए / साइयं म मुसं बूया एस धम्मे वुसीमओ // 19 // अइक्कम्मति वायाए मणसा वि ण पत्थए / सव्वओ संवुडे दंते आयाणं सुसमाहरे // 20 // कडं च कज्जमाणं च आगमिस्सं च पावगं / सव्वं तं णाणुजाणंति आयगुत्ता जिइंदिया // 21 // जे याऽबुद्धा महाभागा वीरा असमत्तदंसिणो / असुद्धं तेसि परकंतं सफल होइ सव्वसो // 22 // जे य बुद्धा महाभागा वीरा
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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