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________________ 130 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि सेवणेणं हुएण एगे पवयंति मोक्खं / / 12 / पाओसिणाणाइसु णत्थि मोक्खो खारस्स लोणस्स अणासणेणं / ते मज्जमंसं लसुणं च भोचा अण्णत्थ वासं * परिकप्पयंति / / 13 // उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति सायं च पायं उदगं फुसंता। उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी सिज्झिसु पाणा बहवे दगंसि / / 14 // मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य मग्गू य उट्टा दगरक्खसा य। अट्ठाणमेयं कुसला वयंति उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति // 15 // उदगं जई कम्ममलं हरेज्जा एवं सुहं इच्छामित्तमेव / अंधं व णेयारमगुस्सरित्ता पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा // 16 // पावाई कम्माई पकुव्वओ हि सिओदगं ऊ जइ तं हरेज्जा / सिझिसु एगे दगसत्तघाई मुसं वयंते जलसिद्धिमाहू // 17 // हुएण जे सिद्धिमुदाहरंति सायं च पायं अगणिं फुसंता / एवं सिया सिद्धि हवेज तम्हा अगणिं फुसंताण कुकम्मिणं पि॥१८॥ अपरिक्ख दिढे ण हु सिद्धीएहिंति ते घायमबुज्झमाणा। भूए हिं जाणं पडिलेह सायं विज्ज गहायं तसथाबरेहिं // 19 // थणति लुप्पंति तसंति कम्मी पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू / तम्हा विऊ विरओ आयगुत्ते दटुं तसे या पडिसंहरेज्जा // 20 // जे धम्मलद्धं विणिहाय भंजे वियडेण साहटु य जे सिणाई / जे धोवई लूसयई व वत्थं अहाहु से णागणियस्स दूरे // 21 // कम्मं परिण्णाय दगंसि धीरे वियडेण जीवेज्ज य आदिमोक्खं / से बीयकंदाइ अभुंजमाणे विरए सिणाणाइसु इत्थियासु // 22 // जे मायरं च पियरं च हिच्चा गारं तहा पुत्तपसु धणं च / कुलाई जे धावइ साउगाइं अहाहु से सामणियरस दूरे // 23 // कुलाई जे धावइ साउगाई आघाइ धम्मं उयराणुगिद्धे / अहाह से आयरियाण सयंसे जे लावए जा असणस्स हेऊ॥२४।। णिक्खम्म दीणे परभोयणम्मि मुहमंगलीए उयराणुगिद्धे / णीवार गिद्धे व महावराहे अदूरए एहिइ घायमेव // 25 // अण्णस्त पाणस्सिह लोइयस्स अणुप्पियं भासइ सेवमाणे / पासत्थयं चेव कुसीलयं च णिस्सारए होइ जहा पुलाए // 26 // अण्णायपिण्डेणऽहियासए जा णो पूयणं तवसा आवहेजा / सद्देहि रूवेहि असज्जमाणं सव्वेहि कामेहि विणीय गेहिं // 27 // सव्वाइं संगाई अइच्च धीरे सव्वाइं दुक्खाई तितिक्खमाणे / अखिले अगिद्धे अणिएयचारी अभयंकरे भिक्खू अणाविलप्पा // 28 / भारस्स जाआ मुणि भुंजएज्जा कंखेज पावस्स विवेग भिक्खू / दुक्खेण पुढे धुयमाइए ज्जा संगामसीसे व परं दमेज्जा / / 29 / / अवि हम्ममाणे फलगावयट्ठी समागमं कंखइ
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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