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________________ 128 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि तमं पगासे // 6 // अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं णेया मुणी कासव आसुपण्णे / इंदे व देवाण महाणुभावे सहस्सणेया दिवि णं विसिढे // 7 / / से पण्णया अक्खयसागरे वा महोदही वा वि अणंत पारे / अणाइले वा अकसाइ मुक्के सके व देवाहिवई जुईमं / / 8 // से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए सुदंसणे वा णगसव्वसेटे / सुरालए वा सि मुदागरे से विरायए णेगगुणोववेए // 9 // सयं सहस्साण उ जोयणाणं तिकंडगे पंडगवेजयंते / से जोयणे गवणक्ते सहस्से उद्धस्सियो हेतु सहस्समेगं // 10 // पुढे णभे चिट्ठइ भूमिवढिए जं सूरिया अणुपरिवट्टयति / से हेमवण्णे बहुणंदणे य जंसी रइं वेययई महिंदा // 11 // से पव्वए सहमहप्पगासे विरायई. कंचणमट्ठवण्णे / अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे गिरीवरे से जलिए व भोमे // 12 // महीइ मज्झम्मि ठिए णगिंदे पण्णायए सूरियसुद्धलेसे / एवं सिरीए उ स भूरिवण्णे मणोरमे जोयइ अचिमाली / / 13 / / सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स पवुच्चई महओ पव्वयस्स / एओवमे समणे णायपुत्ते जाईजसोदंसणणाणसीले // 14|| गिरीवरे वा णिसहाऽऽययाणं रुयए व सेटे वल. याययाणं / तओवमे से जगभूइपण्णे मुणीण मज्झे तमुदाहु पण्णे / / 15 / / अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता अणुत्तरं झाणवरं झियाइं / सुसुक्कसुकं अपगंडसुकं संखिंदुएगंतवदायसुकं / / 16 / / अणुत्तरग्गं परमं महेसी असेसकम्मं स विसोहइत्ता / सिद्धि गए साइमणंतपत्ते णाणेण सीलेण य दंसणेण / / 17 // रुक्खेसु णाए जह सामली वा जस्सि रई वेययई सुवण्णा / वणेसु वा णंदणमाहु सेलृ णाणेण सीलेण य भूइपण्णे // 18 / / थणियं व सहाण अणुत्तरे उ चंदो व ताराण महाणुभावे / गंधेसु वा चंदणमाहु सेढं एवं मुणीणं अपडिण्णमाहु / / 19 / / जहा सयंभू उदहीण सेढे णागेसु वा धरणिंदमाहु सेढे / खोओदए वा रस वेजयंते तवोवहाणे मुणि वेजयंते // 20 // हत्थीसु एरावणमाहु णाए सीहो मियाणं सलिलाण गंगा / पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो णिव्वाणवादीणिह णायपुत्ते / / 21 // जोहेसु णाए जह वीससेणे पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु / खत्तीण सेढे जह दंतवक्के इसीण सेढे तह वद्धमाणे // 22 // दाणाण सेढे अभयप्पयाणं सच्चेसु वा अणवजं वयंति / तवेसु वा उत्तम बम्भचेरं लोगुत्तमे समणे णायपुत्ते // 23 // ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा / णिव्वाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा ण णायपुत्ता परमत्थि
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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