SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूयगडो सु. 1 अ. 5 उ.१ 125 रासिं जलियं संजोई तत्तोवमं भूमिमणुकमंता / ते डज्झमाणा कलुणं थणंति अरहरसरा तत्थ चिरढ़िईया // 7 // नइ ते सुया वेयरणी भिदुग्गा णिसिओ जहा खुर इव.तिक्खसोया / तरंति ते वेयरणी भिदुग्गं उसुचोइया सत्तिसु हम्ममाणा // 8 // कीलेहि विझंति असाहुकम्मा णावं उ-ते सइविप्पहूणा / अण्णे उ सूलाहि तिसूलियाहिं दीहाहि विभ्रूण अहे करेंति // 9 / केसिं च बंधित्तु गले सिलाओ उदगंसि बोलेंति महालयसि / कलंबुयावालुयमुम्मुरे य लोलंति पञ्चंति य तत्थ अण्णे // 10 // असूरियं णाम महाभितावं अंधंतमं दुप्पतरं महंत / उर्दू अहे यं तिरियं दिसासु समाहिओ, जत्थगणी झियाइ // 11 // जंसी गुहाए जलणेऽतिउट्टे अविजाणओ डज्झइ लुत्तपण्णो / सया य कलुणं पुण घम्मठाणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्म // 12 // चत्तारि अगणीओ समारभेत्ता जहिं कूरकम्माऽभितवेंति बालं / ते तत्थ चिटुंतऽभितप्पमाणा मच्छा व जीवंतु व जोइपत्ता // 13 // संतच्छणं णाम महाभितावं ते णारया जत्थ असाहुकम्मा / हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं फलगं व तच्छंति कुहाडहत्था // 14 // रुहिरे पुणो वच्चसमुस्सियंगे भिण्णुत्तमंगे परिवत्तयंता / पयंति णं णेरइए फुरते सजीवमच्छे व अयोकबल्ले // 15 // णो चेव ते तत्थ मसीभवंति ण मिज्जई तिव्वभिवेयणाए / तमाणुभागं भणुवेययंता दुक्खंति दुक्खी इह दुक्कडेणं // 16 // तहिं च ते लोलणसंपगाढे गाढं सुतत्तं अगणिं वयंति / ण तत्थ सायं लहई भिदुग्गे अरहियाभितावा तह वी तवेंति // 17 / / से सुचई णगरवहे व सहे दुहोवणीयाणि पयाणि तत्थ / उदिण्णकम्माण उदिण्णकम्मा पुणो पुणो ते सरहं दुहेति // 18 // पाणेहि णं पाव वियोजयति तं भे पवक्खामि जहातहेणं / दण्डेहि तत्था सरयंति बाला सव्वेहि दण्डेहि पुराकए हिं // 19 // ते हम्ममाणा गरगे पडंति पुण्णे दुरूवस्स महाभितावे / ते तत्थ चिट्ठति दुरूवभक्खी तुटूंति कम्मोवगया किमीहिं // 20 // सया कसिणं पुण धम्मठाणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं / अंदूसु पक्खिप्प विहत्तु देहं वेहेण सीसं सेऽभितावयंति // 21 // छिंदंति बालस्स खुरेण णकं उठे वि छिंदंति दुवे वि कण्णे / जिब्भं विणिकस्स विहत्थिमेत्तं तिक्खाहि सूलाहि भितावयंति // 22 / / ते तिप्पमाणा तलसंपुडं व राइदियं तत्थ थणंति बाला / गलंति ते सोणियपूयमंसं पज्जोइया खारपइद्धियंगा // 23 // जइ ते सुया लोहियपूयपाई बालागणी तेअगुणा परेणं / कुम्भी महंताहियपोरुसीया समूसिया
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy