SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुयगडो सु. 1 अ. 4 उ. 2 123 काहिति // 22 / / सुयमेयमेवमेगेसिं इत्थीवेय त्ति हु सुयक्खायं / एयं पिता वइत्ताणं अदु वा कम्मुणा अवकरेंति // 23 / / अण्णं मणेण चिंतेंति वाया अण्णं च कम्मुणा अण्णं / तम्हा ण सहहे भिक्खू बहुमायाओ इथिओ णचा / / 24 // जुवई समणं बूया विचित्तलंकारवत्थगाणि परिहित्ता / विरया चरिस्सहं रुक्खं धम्ममाइक्ख णे भयंतारो // 25 // अदु सावियापवाएणं अहमंसि साहम्मिणी य समणाणं / जउकुम्भे जहा उवज्जोई संवासे विऊ विसीएज्जा // 26 // जउकुम्भे जोइउवगूढे आसुभितत्ते णासमुवयाइ / ए वित्थियाहिं अणगारा संवासेण णासमुवयंति // 27 // कुवंति पावगं कम्मं पुट्ठा वेगेवमाहिंसु / णोऽहं करेमि पावं ति अंकेसाइणी ममेस त्ति // 28 // बालस्स मंदयं बीयं जं च कडं अवजाणई भुजो / दुगुणं करेइ से पावं पूयणकामो विसणणेसी // 29 // संलोकणिज्जमणगारं आयगय णिमंतणेणाहंसु / वत्थं च ताइ पायं वा अण्णं पाणगं पडिग्गाहे // 30 // णीवारमेवं बुज्झेज्जा णो इच्छे अंगारमागंतुं / बद्धे विसयपासेहिं मोहमावज्जइ पुणो मंदे // 31 // त्ति बेमि || ॥चउत्थं अज्झयणं बीओ उद्देसो // ओए सया ण रज्जेजा भोगकामी पुणो विरज्जेज्जा / भोगे समणाणं सुणेह जह भुंजंति भिक्खुणो एगे // 1 // अह तं तु भेयमावण्णं मुच्छियं भिक्खं काममइवढें / पलिभिंदिया णं तो पच्छा पादुद्ध? मुद्धि पहणंति / / 2 // जइ केसिया णं मए भिक्खू णो विहरे सह णमित्थीए / केसाणविहं लुचिस्सं णण्णत्थ मए चरेज्जासि // 3 // अह णं से होइ उवलद्धो तो पेसति तहाभूएहिं / अलाउच्छेयं पेहेहि वग्गुफलाई आहराहि त्ति / / 4 / / दारुणि सागपागाए पज्जोओ वा भविस्सई राओ। पायाणि य मे रयावेहि एहि ता मे पिट्ठओमहे // 5 // वत्थाणि य मे पडिलेहेहि अण्णं पाणं च आहराहि त्ति / गंधं च रओहरणं च कासवगं च मे समणुजाणाहि / / 6 / / अदु अंजणिं अलंकारं कुक्कययं मे पयच्छाहि / लोद्धं च लोद्धकुसुमं च वेणुपलासियं च गुलियं च // 7 // कुटुं तगरं च अगरुं संपिटुं सम्मं उसिरेणं / तेल्लं मुहभिजाए वेणुफलाई संणिहाणाए // ८॥णंदीचुण्णगाई पाहराहि छत्तोवाणहं च जाणाहि / संत्थं च सूवच्छेज्जाए आणीलं च वत्थयं रयावेहि / / 9 // सुफणिं च सागपागाए आमलगाई दगाहरणं च / तिलगकरणिमंजणसलागं घिसु मे विहू
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy