SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 122 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि उब्वायं पि ताउ जाणंसु जहा लिस्संति भिक्खुणो एगे // 2 / / पासे भिसं णिसीयंति अभिक्खणं पोसवत्थं परिहिंति / कार्य अहे वि दंसंति बाह उद्घ१ कक्खमणुव्वजे // 3 // सयणासणेहिं जोगेहिं इथिओ एगया णिमंतति / एयाणि चेव से जाणे पासाणि विरूवरूवाणि / / 4 / / णो तासु चक्खु संधेज्जा णो वि य साहसं समभिजाणे / णो सहियं पि विहरेन्जा एवमप्पा सुरक्खिओ होइ / / 5 / / आमंतिय उस्सविया भिक्खं आयसा णिमंतेति / एयाणि चेव से जाणे सहाणि विरूवरूवाणि // 6 // मणबंधणेहिं णेगेहिं कलुणविणीयमुवगसित्ताणं / अदु मंजुलाई भासंति आणवयंति भिण्णकहाहिं / / 7 / / सीहं.जहा व कुगिमेणं णिब्भयमेगचरं ति पासेणं / एवित्थियाउ बंधति संवुड एगइयमणगारं / / 8 // अह तत्थ पुणो णमयंति रहकारो व णेमि आणुपुव्वीए / बद्धे मिए व पासेणं फंदंते वि ण मुच्चए ताहे // 9 // अह सेऽणुतप्पई पच्छा भोचा पायसं व विसमिस्सं / एवं विवेगमायाय संवासो ण वि कप्पए दविए // 10 / / तम्हा उ वजए इत्थी विसलित्तं व कण्टगं णचा। ओए कुलाणि वसवत्ती आघाए ण से वि णिग्गंथे / / 11 // जे एयं उंछं अणुगिद्धा अण्णयरा होति कुसीलाणं / सुतवस्सिए वि से भिक्खूणो विहरे सह णमित्थीसु // 12 // अविधूयराहि सुण्हाहिं धाईहिं अदुव दासीहिं / महई हि वा कुमारीहिं संथवं से ण कुजा अणगारे // 13 / / अदु णाइणं च सुहीणं वा अप्पियं द? एगया होइ / गिद्धा सत्ता कामेहिं रक्खणपोसणे मगुस्सोऽसि / / 14 // समणं पि दठ्ठदासीणं तत्थ वि ताव एगे कुप्पंति / अदु वा भोयणेहि णत्थेहिं इत्थीदोसं संकिणो होति // 15 // कुव्वंति संथवं ताहिँ पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं / तम्हा समणा ण समेंति आयहियाए संणिसेज्जाओ // 16 / / बहवे गिहाई अवहट्ट मिस्सीभावं पत्थुया य एगे / धुवमग्गमेव पवयंति वायावीरियं कुसीलाणं // 17 // सुद्धं रवइ परिसाए अह रहस्सम्मि दुक्कडं करेंति / जाणंति य णं तहाविऊ माइल्ले महासढेऽयं ति / / 18 // सयं दुक्कडं च ण वयइ आइट्ठो वि पकत्थइ बाले / वेयाणुवीइ मा कासी चोइजंतो गिलाइ से भुज्जो // 19 // ओसिया वि इत्थिपोसेसु पुरिसा इत्थिवेयखेयण्णा। पण्णास मण्णिया वेगे णारीणं वसं उवकसति // 20 / / अवि हत्थपायछेयाए अदु वा वद्धमंसउक्कंते / अवि तेयसाभितावणाणि तच्छिय खारसिंचणाई य // 21 // अदु कण्णणासच्छेयं कण्ठच्छेयणं तिइक्खंती। इइ एत्थ पावसंतत्ता ण वेंति पुणो ण
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy