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________________ सुयगडो सु. 1 अ. 4 उ. 1 121 तहा णारायणे रिसी // 2 // आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी। पारासरे दगं भोचा बीयाणि हरियाणि य // 3 / / एए पुव्वं महापुरिसा आहिया इह संमया / भोचा बीयोदगं सिद्धा इइ मेयमगुस्सुयं / / 4 / / तत्थ मंदा विसीयंति वीहच्छिण्णा व गद्दभा। पिट्ठओ परिसप्पंति पिट्ठसप्पी य संभमे // 5 / / इहमेगे उ भासंति सायं साएण विजई / जे तत्थ आरियं मग्गं परमं च समाहियं / / 6 / / मा एयं अवमण्णंता अप्पेणं लुम्पहा बहुं / एयस्स उ अमोक्खाए अयोहारि व्व जूरह // 7 // पाणाइवाए वटुंता मुसावाए असंजया / अदिण्णादाणे वटुंता मेहणे य परिग्गहे // 8 // एवमेगे उ पासत्था पण्णवंति अणारिया / इत्थीवसं गया बाला जिणसांसणपरंमुहा // 9 // जहा गण्ड पिलागं वा परिपीलेज्ज मुहुत्तगं। एवं विष्णवणित्थीसु दोसो तत्थ को सिया ? // 10 / / जहा मंधादणे णाम थिमियं भुंजई दगं / एवं विण्णव णित्थीसु दोसो तत्थ कओ सिया ? / / 11 // जहा विहंगमा पिंगा थिमियं भुंजई दगं। एवं विण्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कओ सिया ? // 12 // एवमेगे उ पासत्था मिच्छदिट्ठी अणारिया। अज्झोववण्णा कामेहिं पूयणा इव तरुणए // 13 // अणागयम पस्संता पच्चुप्पण्णगवेसगा / ते पच्छा परितप्पंति खीणे आउम्मि जोव्वणे / / 14 // जेहिं काले परिकंतं ण पच्छा परितप्पए / ते धीरा बंधणुम्मुक्का णावकखंति जीवियं // 15 / / जहा णई वेयरणी दुत्तरा इह संमया। एवं लोगंसि णारीओ दुत्तरा अमईमया // 16 / / जेहिं णारीण संजोगा पूयपापिट्ठओ कया। सव्वमेयं णिराकिच्चा ते ठिया सुसमाहिए // 17 // एए ओघं तरिस्संति समुदं ववहारिणो / जत्थ पाणा विसण्णासि किच्चंती सयकम्मुणा / / 18 / / तं च भिक्खू परिणाय सुव्वए समिए चरे / मुसावायं च वज्जिज्जा अदिण्णादाणं च वोसिरे // 19 // उड्डमहे तिरियं वा जे केई तसथावरा। सव्वत्थ विरई कुज्जा संति णिव्वाणमाहियं / / 20 / इमं च धम्ममायाय कासवेण पवेइयं / कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए। 21 / / संखाय पेसलं धम्मं दिट्ठिमं परिणिध्वुडे / उवसग्गे णियामित्ता आमोक्खाए परिव्वएज्जासि / / 22 / / त्ति बेमि // // इस्थिपरिषणा णाम चउत्थं अज्झयणं पढमो उद्देसो / / . . जे मायरं च पियरं च विप्पजहाय पुव्यसंजोगं / एगे सहिए चरिस्सामि . आरयमेहुणो विवित्तेसु // 1 // सुहुमेणं तं परिक्कम्म छण्णपएण इथिओ मंदा /
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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