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________________ . सूयगडो सु. 1 अ. 3 उ. 3 119 जवित्तए / / 1 / / अप्पेगे णायओ दिस्स रोयंति परिवारिया / पोस णे ताय पुट्ठो सि कस्स ताय जहासि णे // 2 // पिया ते थेरओ ताय ससा ते खुडिया इमा। भायरो ते सगा ताय सोयरा किं जहासिणे ? // 3 // मायरं पियरं पोस एवं लोगो भविस्सइ / एवं खु लोइयं ताय जे पालेति य मायरं / / 4 // उत्तरा महुरुल्लावा पुत्ता ते ताय खुड्डया / भारिया ते णवा ताय मा सा अण्णं जणं गमे / / 5 / / एहि ताय घरं जामो मा य कम्म सहा वयं / बिइयं पि ताय पासामो जामु ताव सयं गिहं / / 6 // गंतुं ताय पुणो गच्छे ण तेणासमणो सिया / अकामगं परिक्कम्म को ते वारिउमरिहइ // 7 // जं किंचि अणगं ताय तं पि सव्वं समीकयं / हिरणं ववहाराइ तं पि दाहामु ते वयं // 8 // इच्चेव णं सुसेहंति कालुणीयसमुट्ठिया। विबद्धो णाइसंगेहिं तओऽगारं पहावइ / / 9 / / जहा रुक्खं वणे जायं मालुया पडिबंधइ / एवं णं पडिबंधंति णायओ असमाहिणा // 10 // विबद्धो णाइसंगेहिं हत्थी वा वि णवग्गहे / पिट्ठओ परिसप्पंति सुय गो व्व अदूरए // 11 // एए संगा मणूसाणं पायाला व अतारिमा। कीवा जत्थ य किस्संति णाइसंगेहि मुच्छिया // 12 // तं च भिक्खू परिणाय सव्वे संगा महासवा। जीवियं णावकंखिजा सोचा धम्ममणुत्तरं // 13 // अहिमे संति आवट्टा कासवेणं पवेइया। बुद्धा जत्थावसप्पंति सीयंति अबुहा जहिं / / 14 // रायाणो रायऽमचा य माहणा अदुव खत्तिया / णिमंतयति भोगेहिं भिक्खुयं साहुजीविणं // 15 / / हत्थस्सरहजागेहिं विहारगमणेहि य / भुंज भोगे इमे सग्घे महरिसी पूजयामु तं // 16 // वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य / भुंजाहिमाइं भोगाई आउसो ! पूजयामु तं // 17 // जो तुमे णियमो चिण्णो भिक्खु भावम्मि सुव्वया / अगारमावसंतस्स सव्वो संविजए तहा // 18 // चिरं दूइज्जमाणस्स दोसो दाणिं कुओ तव ? / इच्चेव णं णिमंतेंति णीवारेण व सूयरं // 19 // चोइया भिक्खचरियाए अचयंता जवित्तए / तत्थ मंदा विसीयंति उज्जागंसि व दुब्बला // 20 / / अचयंता व लूहेणं उवहाणेण तजिया / तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि जरग्गवा // 21 // एवं णिमंतणं लद्धं मुच्छिया गिद्ध इत्थिसु / अज्झोववण्णा कामेहिं चोइज्जता गया गिहं // 22 // त्ति बेमि / . . // तइयं अज्झयणं तइओ उद्देसो॥ जहा संगामकालम्मि पिट्ठओ भीरु वेहइ / वलयं गहणं णूम को जाणइ परा
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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