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________________ 112 अंग-पविट्ठ सुत्ताणि मिलक्खू अमिलक्खुस्स जहा वुत्ताणुभासए ण हेउं से वियाणाइ भासिय तऽणुभासए // 15 // एवमण्णाणिया णाणं वयंता वि सयं सयं / णिच्छयत्यं ण जाणंति मिलक्खु व्व अबोहिया // 16 // अण्णाणियाणं वीमंसा अण्णाणे ण णियच्छइ / अप्पणो य परं णालं कुतो अण्णाणुसासिउं // 17 // वणे मूढे जहा जंतू मूढे णेयाणुगामिए / दो वि एए अकोविया तिव्वं सोयं णियई // 18 // अंधो अंधं पहं ऐतो दूरमद्धाणुगच्छइ / आवज्जे उप्पहं जंतू अदुवा पंथाणुगामिए // 19 // एवमेगे णियागट्ठी धम्ममाराहगा वयं / अदुवा अहम्ममावज्जे ण ते सव्वज्जुयं वए / // 20 // एवमेगे वियकाहिं णो अण्णं पज्जुवासिया। अप्पणो य वियकाहिं अयमंजू हि दुम्मई // 21 // एवं तक्काइ साहेंता धम्माधम्मे अकोविया। दुक्खं ते णाइउट्टेति सउणी पंजरं जहा // 22 // सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वयं / जे उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया / / 23 / / अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं / कम्मचिंतापणहाणं संसारस्स पवडणं // 24 // जाणं काएणऽणाउट्टी अबुहो जं च हिंसइ / पुट्ठो संवेयइ परं अवियत्तं खु सावजं // 25 / / संतिमे तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं / अभिकम्मा य पेसा य मणसा अणुजाणिया // 26 ॥,एए उ तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं / एवं भावविसोहीए णिव्वाणमभिगच्छई / / 27 // पुत्तं पिया समा. रब्भ आहारेज असंजए / भुजमाणो य मेहावी कम्मुणा णोवलिप्पइ / / 28 // मणसा जे पउस्संति चित्तं तेसिं ण विज्जइ / अणवज्जमतहं तेसिं ण ते संवुडचारिणो // 29 // इच्चेयाहि य दिट्ठीहिं सायागारवणिस्सिया / सरणं ति मण्णमाणा सेवंती पावगं जणा // 30 // जहा अस्साविणिं णावं जाइअंधो दुरूहिया / इच्छई पारमागंतु अंतरा य विसीयई / / 31 // एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी अणारिया / संसारपारकंखी ते, संसारं अणुपरियट्टति / / 32 // त्ति बेमि / / // तइओ उद्देसो॥ जं किंचि उ पूइकडं सड्डीमागंतुमीहियं / सहस्संतरियं भुंजे दुपक्वं चेव सेवइ // 1 // तमेव अवियाणंता विसमंसिअकोविया। मच्छा वेसालिया चेव उदगस्सऽभियागमे // 2 // उदगस्स पहावेणं सुकंसिग्धं तमेति उ / ढंकेहि य कंकेहि य आमिसत्थेहिं ते दुही // 3 // एवं तु समणा एगे वट्टमाणसुहेसिणो। मच्छा वेसा. लिया चेव घायमेस्संति गंतसो // 4 // इणमण्णं तु अण्णाणं इहोंगेसिमाहियं /
SR No.004390
Book TitleAngpavittha Suttani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1982
Total Pages1476
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size23 MB
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