________________ - उत्तरज्झयणसुत्तं अ. 36 1167 नु तव चरे // 255 // एगंतरमायाम, कट्ट संवच्छरे दुवे। तओ संवच्छरद्धं तु, गाइविगिटुं तवं चरे // 256 // तओ संवच्छरद्धं तु, विगिटुं तु तवं चरे / परिमिय चेव आयामं, तंमि संवच्छरे करे // 257 // कोडीसहियमायाम, कट्ट संवच्छरे मुणी / मासद्धमासिएण तु, आहारेण तवं चरे // 258 // कंदप्पमामिओगं च, किदिवसियं मोहमासुरतं च / एयाउ दुग्गईओ, मरणमि विराहिया होति // 259 // मिच्छादसणरत्ता, सणियाणा उ हिंसगा / इय जे मरंति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोहो // 260 / / सम्मइंसमरत्ता, अणियाणा सुक्क लेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही // 261 // मिच्छादसणरत्ता, सणियाणा कण्हलेसमोगाढा / इय जे मरंति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही // 262 // जिणवयणे अणुरत्ता, जिण. वयणं जे करेंति भावेण / अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी // 263 / / बालमरणाणि बहुसो, भकाममरणाणि चेव य बहूणि / मरिहंति ते वराया, जिण. वयणं जे ण जाणंति // 264 // बहुआगमविण्णाणा, समाहि उप्पायगा य गुणगाही। एएणं कारणेणं, अरिहा आलोयणं सोउं // 265 // कंदप्पकुक्कुयाई, तह सीलसहा. चहासविगहाई / विम्हावेतो य परं, कंदप्पं भावणं कुणइ // 266 / / मंताजोगं काउं, भूईकम्मं च जे पउंजंति / सायरसइडिहेडे, अमिओगं भावणं कुणइ // 267 // माणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूणं / माई अवण्णवाई, किष्विसियं भावणं कुणइ // 268 // अणुबद्धरोसपसरो, तह य णिमित्तमि होइ पडिसेवी / एएहिं कार हिं, आसुरिय भावणं कुणइ // 269 // सत्थगहणं विसभक्खणं च, जलणं च जलपवेसो य / अणायारभंडसेवी, जम्मणमरणाणि बंधति // 270 // इइ पाउकरे बुद्धे गायए परिणिबुए। छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसं[बुडे]मए / / 271 // त्ति-बेमि // इति जीवाजीवविभत्ती णामं छत्तीसइमं अज्झयणं समत्तं // 36 // // उत्तरज्झयणसुत्तं समत्तं //