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________________ णिसीहसुत्तं उ० 2 943 पायं अविहीए बैंधइ बंधतं वा साइजइ // 45 // जे भिवखू पायं एगेण बंघेण बंधइ बंधतं वा साइजइ // 46 // जे भिव खू पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधइ बंधतं वा साइजइ // 47 // जे भिक्खू अइरेगबंधणं पायं दिवड्डाओ मासाओ परेण धरेइ धरेतं वा साइजइ // 48 // जे भिक्खू वत्थस्स एगं पडियाणियं देइ देंतं वा साइजइ // 49 / / जे भिक्खू वत्थस्स परं तिण्हं पडियाणियाणं देइ देंतं वा साइजइ // 50 // जे भिक्ख अविहीए वत्थं सिव्वइ सिव्वंतं वा साइजइ // 51 // जे भिवत्र वत्थस्सेगं फालियगंठियं करेइ करेंतं वा साइजइ // 52 // जे भिक्खू वत्थस्स परं तिण्डं फालियगंठियाणं करेइ करेंतं वा साइजइ // 53 // (जे भिक्खू वत्थस्स एगं विफलियं गंठियं देइ देयंतं वा साइजइ // 54 // जे भिक्खू वत्थस्स परं तिहं विफलियगंठियाणं देह देयंतं वा साइजइ // 55 // ) जे भिक्खू वत्थं अविहीए गंठेइ गंटतं वा साइजइ // 56 // जे भिक्खू अतजाएणं गहेइ गहंतं वा साइजइ // 57 / / जे भिक्खू अइरेगगहियं वत्थं परं दिवड्डाओ मासाओ धरेइ धरेतं वा साइजइ // 58 // जे भिक्खू गिहधूमं अण्णउस्थिएण वा गारथिएण वा परिसाडावेइ परिसाडावेतं वा साइजइ / / 59 // जे भिक्खू पूइकम्मं भुंजइ भुंजतं वा साइजइ / तं सेवमाणे आवजइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं // 60 // पि.सीहऽज्झयणे पढमो उद्देसो समत्तो // 1 // बिइओ उद्देसो __ जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणयं करेइ करेंतं वा साइजइ // 1 // जे भिवखू दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हइ गेण्हतं वा साइजइ // 2 // जे भिक्खू दास्दंडयं पायपुंछणं धरेइ धरेतं वा साइजइ // 3 // जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं वियरइ वियरंतं वा साइजइ // 4 // जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभाएइ परिभाएंतं वा साइजइ // 5 / / जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परिभुंजइ परिभुजंतं वा साइजइ // 6 // जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं परं दिवढाओ मासाओ धरेइ धरेतं वा साइ• जइ // 7 // जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणयं विसुयावेइ विसुयावेतं वा साइजइ // 8 // जे भिक्खू अचित्तपइट्ठियं गंधं जिग्घइ वा जिग्यंतं वा साइजइ // 9 // जे भिक्खू पयमगं वा संकम वा आलंबणं वा सयमेव करेइ करेंतं वा साइजइ // 10 // जे भिक्खू दगवीणियं सयमेव करेइ करेंतं वा साइजइ // 11 // जे भिक्खू सिकगं वा सिकगणं
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
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