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________________ बिहान बिहक्कप्पसुत्तं उ. 4 उग्गहे / 26 / से वत्थुसु अव्वाबडेसु अब्बोगडेसु अपरपरिन्गहि एसु अमरपरिन्गहिएसु सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठह अहालंदमवि उग्र हे // 27 // से वत्थुसु वावडेसु वोगडेसु परपरिग्गहिएसु मिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि उग्गहे अणुण्णवेयट्वे सिया अहालंदमवि उग्गहे // 28 // से अणुकुड्डेसु वा अणुभित्तीसु वा अणुचरियासु वा अणुफरिहासु वा अणुपंथेसु. वा अणुमेरासु वा सच्चे उगहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि उग्गहे // 29 // से गामस्स वा जाव रायहाणाए (संणिवेसंसि) वा बहिया सेण्णं संणिविटुं पेहाए कप्पह णिग्गंथाण वा णिगंथीण वा तद्दिवसं भिक्खायरियाए गंतुं पडिएत्तए, णो से कप्पड़ तं रयणि तत्थेव उवाइणावित्तए, जे खलु णिगंथे वा णिग्गंथी वा तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा साइजइ, से दुहओ वीइक्कममाणे भावनइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुछाइयं // 30 // से गामंसि वा जाव संणिवेसंसि वा कप्पइ णिमांथाण वा णिग्गंधीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं उग्गहं ओगिणिहत्ताणं चिट्टितए // 31 / / त्ति-बेमि // बिहक्कप्पे तइओ उद्देसओ समत्तो // 3 // . चउत्थो उद्देसओ - तओ अणुग्घाइया पण्णत्ता, तंजहा-हत्यकामं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे, राईभोयणं भुंजमाणे // 1 // तओ पारंचिया पण्णत्ता, तंजह!-दुट्टे पारंचिए, पमत्ते पारंचिए, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिए // 2 // तओ अणवटुप्पा पण्णत्ता, नंजहा-साहम्मियाणं तेण्णं करेमाणे, अण्णधम्मियाणं तेणं करेमाणे, हत्थादालं दलमाणे // 3 // तओ णो कप्पंति पव्वावेत्तए तंजहा-पण्डए वाइए कीवे // 4 // एवं मुण्डावेत्तए // 5 // सिक्खावेत्तए // 6 // उवट्ठावेत्तए // 7 // संभुजित्तए // 8 // संवासित्तए // 9 // तओ णो कप्पंति वाइत्तए, तंजहा-अविणीए विगई. पडिबद्धे अविओसवियपाहुडे // 10 // तओ कप्पंति वाइत्तए, तंजहा-विणीए णो विगईपडिबद्धे विओसवियपाहुडे // 11 // तओ दुस्सण्णप्पा पण्णत्ता, तंजहादुढे मूढे वुम्गाहिए // 12 // तओ सुस्सण्णप्पा पण्णत्ता, तंजहा-अदुढे अमूढे अबुग्गाहिए.।।१३।। णिग्गंथिं च णं गिलायमाणि पिया वा भाया वा पुत्तो वा पलिस्सएजा, तं च णिग्गंथी साइज्जेजा, मेहुणपडिसेयणपत्ता आवजइ चाउम्मासिय परिहारहाणं अणुग्याइयं // 14 // णिग्गंथं च णं गिलायमाणं माया वा भगिणी वा धूया
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
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