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________________ रायपसेणइयं 51 हीणा चेव सूरियाभस्म देवस्स अंतियं पाउब्भवह // 12 // तए णं ते सूरियाभविमाणवासिणो बढे वेमाणिया देवा देवीओ य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एयमझें सोचा णिसम्म हड्तुङ जाव हिय या अपेगड्या वंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सकारवत्तियाए एवं संमाणवत्तियाए कोउहलवत्तियाए अप्पे० असुयाई सुणिस्सामो सुयाइं अट्ठाई हेऊइं पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियामरस देवस्स वयणमणुयत्तमाणा अप्पेगइया अण्णमण्णमणुयत्तमाणा अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अपेगइया धम्मोत्ति अप्पेगइया जीयमेवंतिकटुं सव्विड्डीए जाव अकालपरिहीणा चेव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउन्भवति / / 13 / तए णं से सूरियाभे देवे ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य अकालपरिहीणा चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासइ पासित्ता हतुढ जाव हियए आभिओगियं देवं सद्दावेइ 2 त्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसयसंणिविटुं लीलठ्यिसालभंजियागं ईहामियउसभ-तुरगणर-मगरविहग वालगकिंणररुरुसरभचमरकुंजरवणलयपटमलयमत्तिचित्तं खभुग्गयवरवडरवेइयापरिगयाभिरामं विजाहरजमलजुयलजंतजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालिणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिभिसमाणं चाखुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलि पमहरमणहरसरं सुहं कंतं दरिसणिजं णिउणोचियमिसिमिसितमणिरयणवंटियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सवित्थिणं दिव्वं गमणसजं सिग्धगमणं णाम दिव्वं जाणविमाणं विउव्वाहि विउवित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चपिणाहि / / 14 // तए णं से आभिओगिए देवे सूरियामेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हढे जाव हियए करयलपरिग्गहियं जाव पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवकमइ अवकमित्ता वेउव्वियसमुन्घाएणं समोहणइ 2 त्ता संखेजाई जोयणाइं जाव अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ 2 त्ता अहासुहमे पोग्गले परियाएइ 2 त्ता दोच्चपि वेउब्वियसमुग्याएणं समोहणित्ता अणेगखंभसयसण्णिविठं जाव दिव्वं जाणविमाणं विउध्वियं पवत्ते यावि होत्था / तए णं से आभि ओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवए विउव्वइ, तंजहा–पुरथिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं, तेसिं तिसोवाणपडिरूवगाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा-वइरामया णिम्मा रिहामया पइटाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलगा लोहियक्खमइयाओ सूईओ वयरामया संधी णाणामणि
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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