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________________ एगणवीसइमं सम्मत्तपयं . जीवा णं भंते ! किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ! गोयमा ! जीवा सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिट्ठी वि / एवं णेरइया वि / असुरकुमारा वि एवं चेव जाव थणियकुमारा | पुढवीकाइया णं पुच्छा / गोयमा ! पुढवीकाइया णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी, एवं जाव वणस्सइ. काइया / बेइंदिया णं पुच्छा / गोयमा ! चेइंदिया सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, जो सम्मामिच्छादिट्ठी / एवं जाव चउरिदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा वाणमंतरजोइसियवेमाणिया य सम्मदिट्ठी वि मिच्छादिट्ठी वि सम्मामिच्छादिट्ठी वि। सिद्धा णं पुच्छा / गोयमा ! सिद्धा सम्मदिट्टी, णो मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी // 555 / / पण्णवणाए भगवईए एगणवीसइमं सम्मत्तपयं समत्तं // वीसइमं अंतकिरियापयं णेरइय अंतकिरिया अणंतरं एगसमय उव्वट्टा / तित्थगरचकिबलवासुदेवमंडलियरयणा य // दारगाहा / / नीवे ण भंते ! अंतकिरियं करेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए करेजा, अत्थेगइए णो करेजा। एवं णेरहए जाप माणिए / रइए गं भंते ! णेरइएसु अंतकिरियं करेजा ? गोषमा ! णो इणढे समढे / रहए ण भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेजा 1 गोयमा ! णो इणढे समटे / एवं जाव वेमाणिएसु / णवरं मणूसेसु अंतकिरियं फरेजत्ति पुच्छा / गोयमा ! अत्थेगइए करेजा, अत्थेगइए णो करेजा / एवं असुरकुमारा जाव वेमाणिए। एवमेव चउवीसं 2 दण्डगा भवंति // 556 // णेरइया णं भंते ! कि अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेति / एवं रयणप्पभापुढविणेरइया वि जाव पंकप्पभापुढवीणरइया / धूमप्पभापुढवीणरइया णं पुच्छ।। गोयमा! णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति, एवं जाव अहेसत्तमापुढवीणेरड्या। असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढी-आउ-वणस्सइकाइया य अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति / तेउवाउबेइंदियतेइंदिय
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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