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________________ अनंगपविट्ठसुत्ताणि समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं / अभासए णं पुच्छा। गोयमा ! अभासए तिविहे पष्णत्ते / तंजहा-अणाइए वा अपजवसिए, अणाइए वा सपजव सिए, साइए वा सपजवसिए / तत्थ णं जे से साइए वा सपजवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकालो / दारं 15 ॥५४७||परित्ते णं पुच्छा / गोयमा ! परित्ते दुविहे पण्णत्ते / तजहा-कायपरित्ते य मंसारपरित्ते य / कायपरित्ते णं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो, असंखेजाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ। संसारपरित्ते णं पुच्छा / गोयमा! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं. कारं जाव अवडं पोग्गलपरिय; देसूणं / अपरित्ते णं पुच्छा। गोयमा! अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते। तंजहा-कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य / कायअपरित्ते गं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो / संसारअपरित्ते णं पुच्छा / गोयमा ! संसारअपरित्ते दुविहे पण्णत्ते / तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपजवसिए / णोपरित्ते-णोअपरित्ते णं पुच्छा / गोयमा! साइए अपजवसिए // दारं 16 // 548 / / पजत्तए णं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं / अपजत्तए णं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / णोपजत्तए-णोअपज्जत्तए णं पुच्छा। गोयमा! साइए अपज्जवसिए // दारं 17 // 549 // सुहुमे णं भंते ! सुहुमेत्ति पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो / बायरे णं पुच्छा / गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखेज कालं जाव खेत्तओ अंगुलस्स असंखेजहभागं। णोसुहमणोबायरे णं पुच्छा / गोयमा ! साइए अपजवसिए // दारं 18 // 550 // सण्णी णं भंते ! पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं अंतोसुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं / असण्णी णं पुच्छ। / गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। णोसण्णीणोअसण्णी णं पुच्छा / गोयमा ! साइए अपज्जवसिए // दारं 19 // 551 // भवसिद्धिए णं पुच्छा / गोयमा ! अणाइए सपजवसिए / अभवसिद्धिए णं पुच्छा। गोयमा! अणाइए अपजवसिए / णोभवसिद्धिए-णोअभवसिद्धिए णं पुच्छा / गोयमा! साइए अपज्जवसिए // दारं 20 // 552 // धम्मस्थिकाए णं पुच्छा। गोयमा ! सव्वद्धं, एवं जाव अद्धासमए // दारं 21 // 553 // चरिमे णं पुच्छा। गोयमा! अणाइए सपजवसिए / अचरिमे णं पुच्छा / गोयमा! अचरिमे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-अणाइए वा अपजवसिए, साइए वा अपजवसिए // दारं 22 / / 554 // . // पण्णवणाए भगवईए अट्ठारसमं कायट्टिइपयं समत्तं / /
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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