________________ आदि बारह भेद हैं / पूर्वधर, श्रुत-स्थविर आदि द्वारा रचित आगम "अंगबाह्य' कहलाते हैं / अंग सूत्रों के अतिरिक्त शेष सभी सूत्र "अंगबाह्य" है / अंगबाह्य के दो भेद हैं-१ आवश्यक और 2 आवश्यक व्यतिरिक्त / आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद है–१ कालिक और 2 उत्कालिक / बारह उपांग, चार मूल सूत्र और चार छेद.सूत्र ये सब आवश्यक व्यतिरिक्त के इन दो भेदो में आते हैं / अनंगपविट्ठ सुत्ताणि के इस प्रथम भाग में बारह उपांग में से प्रथम के चार उपांग सूत्र समाविष्ट किये गये है / चारों उत्कालिक सूत्र है। इनका संक्षिप्त विषय विवरण इस प्रकार है 1 ओववाइय-औपपातिक सूत्र में मुख्यतः तीन विषय है१ समवसरणाधिकार-इसमें चंपानगरी, गुणशीलचैत्य, अशोकवृक्ष, कोणिकराजा और उनकी भगवद् भक्ति, भगवान् महावीर का समवसरण, तप के 12 भेद, भगवान् के श्रमण परिवार और प्रभु की धर्मदेशना आदि का विशद वर्णन है / 2 औपपातिक अधिकार--औपपातिक पृच्छा, कर्मबंधन, मरणोत्तर उत्पत्ति का निर्णय एवं अम्बड परिव्राजक आदि का वर्णन है। : सिद्धाधिकार-केवली समुद्घात, सिद्धों के विषय में प्रश्नोत्तर और अंत में 22 गाथाओं द्वारा सिद्ध स्वरूप बतलाया गया है। 2 रायपसेणइयं-राजप्रश्नीय नामक इस द्वितीय उपांग सूत्र में , सूर्याभदेव एवं प्रदेशी राजा द्वारा किए गए प्रश्न और केशी श्रमण द्वारा दिये गये उत्तर आदि का विस्तृत वर्णन है। 3 जीवाजीवाभिगमे-जीवाजीवाभिगम नामक इस तृतीय उपांग सूत्र में जीव-अजीव-अभिगम-जीव और अजीव का विस्तृत स्वरूप, विजयदेव का वर्णन एवं मुख्यरूप से ढाईद्वीप तथा सामान्य रूप से सभी द्वीप समुद्रों का कथन है / इसमें नौ प्रतिपत्तियाँ है / 4 पण्णवणा-प्रज्ञापना नामक इस चतुर्थ उपांग में 36 पद है। एक-एक पद में एक-एक विषय का विशेष वर्णन किया गया है। आगमों में चार प्रकार के अनुयोगों का णिरुपण किया गया है