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________________ संपादकीय ___अनंगपविट्ठ सुत्ताणि का यह प्रथग भाग धर्मप्रिय स्वाध्यायशील पाटकों के कर-कमलों में पहुँचाते मुझे परम हर्ष हो रहा है / दिनांक 10/10/77 को सैलाना में हुई संघ की कार्यकारिणी सभा के निर्णयानुसार आगम प्रकाशन की इस योजना के अंतर्गत जिनागमों के 11 सूत्रों का अंग विभाग "अंगपविट्ठ सुत्ताणि एकारसंगसंजुओ” के रूप में जनवरी 1982 में प्रकाशित किया गया। अंगपविट्ठ सुत्ताणि के प्रकाशन के बाद शेष सूत्रों का प्रकाशन "अनंगपविट सुत्ताणि" के रूप में करना तय हुआ, मुद्रण प्रारंभ किया गया, इस पुस्तक के प्रथम आठ पेज ही कम्पोज हुए कि आगमज्ञ सुश्रावक श्रीमान् रतनलालजी सा. डोशी का दिनांक 13 / 1 / 82 को अकस्मात् स्वर्गवास हो गया। विधि की कैसी विडंबना है ? आप अपनी आंखों से इस योजना के अंतर्गत संपूर्ण सूत्रों का प्रकाशन नहीं देख पाये ? हमारा दुभीग्य ही कहिए कि उनकी उपस्थिति में में सम्पूर्ण आगम-बत्तीसी का प्रकाशन होने से रह गया। . स्व० डोशीजी सा. के आकस्मिक वियोग के पश्चात् हुई संघ की कार्यकारिणी सभा सैलाना दिनांक 3, 4 फरवरी 1982 के प्रस्ताव क्रं. 6 के अनुसार अनंगपविट्ठसुत्ताणि का मुद्रण पुनः प्रारंभ किया गया। साधन अल्प और बाधाएँ अधिक होने से प्रकाशन में विलम्ब हुआ। किसी प्रकार उपांग सूत्रों का यह प्रथम भाग प्रकाशित किया जा रहा है। .. नंदी सूत्र में श्रुतज्ञान के जो चौदह भेद बतलाये गये है उनमें अंतिम दो भेद है—१ अंगपविठ्ठ-अंगप्रविष्ट श्रुत और 2 अणंगपविलैंअनंगप्रविष्ट श्रुत-अंग बाह्य श्रुत / जो तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित और गणधर द्वारा रचित आगम है वे "अंगप्रविष्ट" कहलाते हैं / अंगप्रविष्ठ के आचारांग
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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