SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (5) 1 द्रव्यानुयोग-इसमें जीव, पुद्गल 'धर्म, अधर्म' आकाश, काल, द्रव्य आदि का वर्णन आता है। 2 गणितानुयोग में चारों गति के जीवों की गणना आदि का वर्णन होता है। 3 चरणकरणानुयोग में चारित्र संबंधी और 4 धर्मकथानुयोग में कथा द्वारा धर्मोपदेश आदि का वर्णन आता है / प्रज्ञापना सूत्र में मुख्यतया द्रव्यानुयोग का वर्णन है परंतु कहीं-कहीं चरणकरणानुयोग एवं गणितानुयोग का विषय भी आया है। इस पुस्तक का कम्पोज सुत्तागमे की संशोधित प्रति के आधार से किया गया / यह संशोधित प्रति पू० तपस्वी श्री लालचंदजी म. सा. के परिवार के पं. र. पू० श्री पारसमुनिजी म. सा. द्वारा प्राप्त हुई, इस पर से हमने अपनी प्रति शुद्ध की और उसी से मुद्रण प्रारंभ करवाया। गेली प्रफ का मिलान सूत्रों की उपलब्ध अन्य प्रतियों से किया गया। स्व० श्री डोशीजी सा. के स्वर्गवास के बाद मुझ पर कार्यभार विशेष. रहा, साहित्य सामग्री भी कम उपलब्ध हुई और अन्य योग्य सहायक के अभाव में प्रूफ संशोधन का सारा कार्य मुझे ही करना पड़ा। अतः मै जितना चाहता था उतना तो नहीं कर सका पर जो कुछ किया जा सका, वह प्रस्तुत है। आशा है जिनवाणी के रसिक महानुभावों को यह . प्रकाशन उपयोगी लगेगा। - मैं विद्वान् नहीं हूँ, आगमज्ञान और अनुभव भी विशेष नहीं परंतु मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे विगत 4, 5 वर्षों से श्रद्धेय डोशीजी सा. के सान्निध्य में रह कर कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उन्हीं के आशीर्वाद और वरद् कृपा से मैं यह गुरुतर कार्य कर सका हूँ। इस प्रकाशन में दृढधर्मी सुश्रावक श्रीमान् जशवंतलालभाई शाह बम्बई निवासी का समय 2 पर मार्गदर्शन . प्राप्त होता रहा, इसके लिये मैं उनका हृदय से आभारी हूँ। प्रूफ संशोधन में सावधानी रखते हुए भी कार्य व्यस्तता एवं दृष्टिदोष से अशुद्धियाँ रहना संभव है। अतः सुज्ञ पाठकों एवं विद्वदजनों से नम्र निवेदन है कि वे अशुद्धियों के बारे में हमें सूचित करने का कष्ट करें ताकि सम्पूर्ण उपांग सूत्रों के प्रकाशन के साथ शुद्धिपत्र प्रकाशित किया जा सके।
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy