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________________ जीवाजीवाभिगमे प०३ 216 पडागमंडियं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं लाउल्लोइयमहियं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रागोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति,अप्पेगइया- देवा विजयं० उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं० आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमलदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं०कालागुरुपवरकुंदुरुकतुरुकधूवडझंतमघमतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवटिभूयं करेंति, अप्पगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं वइरवासं पुप्फवासं मल्टवासं गंधवासं चुण्णवासं वत्थवासं आहरणवासं, अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाइंति, एवं सुवण्णविहिं रयणविहिं वइरविहिं पुप्फविहि मल्लविहिं क्षुण्णविहिँ गंधविहिं वत्थविहिं आभरणविहिं भाइंति | अप्पेगइया देवा दुयं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा विलंबियं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा दुयविलंबियं णाम णविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा अंचियं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा रिभियं गट्टविहिं उवदंसेंति अ० अंचियरिभियं णाम दिव्यं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा आरभडं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा भसोलं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा आरभडभसोलं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा उप्पायणिवायपवुत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेति, अप्पेगइया देवा चउव्विहं वाइयं वाएंति, तंजहा-ततं विततं घणं झुसिरं, अप्पेगइया देवा चउव्विहं गेयं गत्यंति, तंजहा-उक्खित्तयं पवत्तयं मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगइया देवा चेउव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तंजहा-दिलृतियं पाडतिय सामंतोवणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं, अप्पेगइया देवा पीणंति, अप्पेगइया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगइया देवा तंडवेंति, अप्पे० लार्सेति, अप्पेगइया देवा पीणंति वुक्कारेति तंडवेति लासेंति, अप्पेगइया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगइया देवा अप्फोडंति, अप्पेगइया देवा वगंति, अप्पेगइया देवा तिवई छिंदंति, अप्पेगइया देवा अप्फोडेति वग्गंति तिवई छिंदेंति, अप्पेगइया देवा हयहेसियं करेंति, अप्पेगइया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा हयहेसियं करेंति हत्थिगुलगुलाइयं करेंति रहघणघणाइयं करेंति,अप्पेगइया देवा उच्छोलेंति, अप्पेगइया देवा पच्छोलेंति, (अपेगइया देवा उक्किट्ठि करेंति) अप्पे
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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