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________________ अनंगपविट्ठसुत्ताणि. भंते ! तुब्भे पएसिस्स रणो धम्ममाइक्खेजाह” / तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-"अवि याइ चित्ता ! जाणिस्सामो” / तए णं से चित्ते सारही केसि कुमारसमणं वंदइ णमंसइ वं० 2 त्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए // 58 // तए णं से चित्ते सारही कलं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयणियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते साओ गिहाओ णिग्गच्छइ 2 त्ता जेणेव पए सिस्स रणो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता पएसिं राय करयल जाव कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ 2 त्ता एवं वयासी-"एवं खलु देवाणुप्पियाणं कम्बोएहिं चत्तारि आसा उवणयं उवणीया। ते य मए देवाणुप्पियाणं अण्णया चेव विणइया / तं एह णं सामी ! ते आसे चिद्रं पासह" / तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-"गच्छाहि णं तुमं चित्ता ! तेहिं चेव च उहिं आसेहिं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि" / तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ जाव हियए० उवट्ठवेइ 2 त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ / तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव अप्पमहम्घाभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ णिग्गच्छइ 2 त्ता जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ 2 त्ता चाउघंटें आसरहं दुरुहइ 2 त्ता सेयवियाए णयरीए मझमझेणं णिग्गच्छइ / तए णं से चित्ते सारही तं रहं णेगाइं जोयणाई उभामेह / तए णं से पएसी राया उण्हेण य तण्हाए य रहवाएणं परिकिलंते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-“चित्ता ! परिकिलंते मे सरीरे तं परावत्तेहि रहे / तए णं से चित्त सारही रहं परावत्तेइ 2 त्ता जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता पएसिं रायं एवं वयासी-"एस णं सामी ! मियवणे उजाणे, एत्थ णं आसाणं समं किलामं सम्म अवणेमो।” तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-"एवं होउ चित्ता !" तए णं से चित्ते सारही जेणेव मियवणे उजाणे जेणेव केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता तुरए णिगिण्हेइ 2 त्ता रहं ठवेइ 2 त्ता रहाओ पच्चोरुहइ 2 त्ता तुरए मोएइ 2 त्ता पएसिं रायं एवं वयासी-" एह णं सामी ! आसाणं समं किलामं सम्मं अवणेमो / " तए णं से पएसी राया रहाओ पच्चोरुहइ, चित्तेण सारहिणा सद्धिं आसाणं समं किलामं सम्म
SR No.004388
Book TitleAnangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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