________________ (8) छ काया में वायुकाय ही हमारे लिए चक्षु ग्राह्य नहीं है अन्य कायों की अपेक्षा इसकी विराधना का सम्पूर्ण त्याग करना अत्यधिक दुःशक्य है अतः इसका कथन अन्त में किया गया है। (E) इन छ कायों का उक्त स्वरूप समझकर जो इनकी विराधना का त्याग एवं उसका पालन नहीं करता है वह कर्म संग , की वृद्धि करता है। दूसरे अध्ययन का सारांश:प्रथम उद्देशक: (1) शब्द रूप गन्ध रस और स्पर्श की चाहना, प्राप्ति, और प्राशक्ति युक्त उपभोग ही संसार की जड़ हैं। .. . (2) इनमें आसक्त जीव संसारिक संबंधियों के मोह की वृद्धि कर उनके लिए रात-दिन अनेक दुःखों से धन और कर्मों का उपार्जन कर संसार वृद्धि करता है।' (3) शरीर की शक्ति, इन्द्रियों का तेज और पुण्य के क्षीण हो जाने पर अथवा वृद्धावस्था प्रा जाने पर इस जीव की बड़ी ही दुर्दशा होती है और वह स्वयं के कर्मों के अनुसार दुःखी हो जाता है। (4) धन-योवन अस्थिर है। सम्पूर्ण संसार के संग्रहित पदार्थ भी छोड़कर जाना पड़ेगा। उस समय ये पदार्थ दुःख व मौत से मुक्त नहीं कर सकेंगे। . (5) प्रतः अवसर को समझकर इस मनुष्य भव में इन्द्रिय शरीर को स्वस्थता रहते हुए ही जागृत होकर प्रात्म अर्थ की सिद्धी हस्तगत कर लेनी चाहिए। द्वितीय उद्देशक: (1) साधना काल में परिषह, उपसर्ग, लोभ, कामनाएं