________________ [ 200 ] सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं। अन्नो भायणं पडिलेहेइ मा अंतराइयदोसा ठवणा दोसो य भविस्सन्ति / सो जइ पढमाए पोरिसीए णिमंतेइ अत्थि णमोकारसहियाइत्ता तो गच्छइ अह नत्थि न गच्छइ तं ठवियव्वं होइ जइ घणं लगेज्जा ताहे गेण्हइ संविक्ताविज्जइ जो व उग्घाडाए पोरसीए पारेइ पारणाइत्तो अन्नो वा तस्स दिज्जइ सामन्नेणं नाए कहिए पच्छा तेण सावगेण समं गम्मइ संघाडगो वच्चइ एगो न वट्टइ पट्टवेउं साहू पुरओ सावगो मग्गओ घरं णेऊण आसणेण उवणिमंतिज्जइ. जइ णिविट्ठो लट्ठयं अह ण णिविसति तहा वि विणओ पयत्तो ताहे भत्तपाणं देइ सयं चेव अहवा भाणं धरेइ भज्जा से देइ अहव ठिओ अच्छइ जहा दिन्नं साहुवि सावसेसं दव्वं गेहइ पच्छाकम्मपरिहरणट्ठा दाउं वंदिऊण विसज्जेइ विसज्जित्ता अणुगच्छइ पच्छा सयं भुंजइ जं तं किर. साहुण ण दिन्नं तं सावगेण न भोत्तव्वं / जइ पुण साहू णत्थि ताहे देसकालवेलाए दिसालोओ कायव्यो विसुद्धभावेण चिंतियव्वं साहुणो जइ होता नाम नित्थारिओ होतो विभासा / इदमपि शिक्षापदव्रतमतिचाररहितमनुपालनीयमिति एतदाहसचित्तनिक्खिवणयं वज्जे सचित्तपिहणयं चेव / कालाइक्कमदाणं परववएसं च मच्छरियं // 327 // 1 एष पाठोऽशुद्ध इव प्रतिभाति परं दृष्टादशेष्वेतादृश एव /