________________ 500 सुभाषितसूक्तरत्नमाला शानी महापुरुषोए माता-पिताने तीर्थनी उपमा आपी के मात पितृसमं तीर्थ, विद्यते न जगत् त्रये / यतः प्राप्नोति सुलभो, नृभवः शिवशर्मदः // 10 // जणणी जम्मभूमी पच्छिमनिदा सुभासिया गुट्ठी। मणइ, माणुस्सं, पंचवि दुक्खेण मुच्चंति // 11 // आशानी अधमता आशैव राक्षसी पुंसा-माशैव विषमजरी / आशैव जीर्णमदिरा, धिगाशा सर्वदोषभूः // 12 // शरीरं श्लथते नाशा, रूपं याति न पापघीः / जरा स्फुरति न ज्ञानं, धिक स्वरूपं शरीरिणां // 13 // गुरुपूजन द्रव्य जीर्णोद्धारमा जाय छे निर्लोभत्वात् तदाचार्य, जगृहे न नृपार्पिता। कथितत्वान नृपः पश्चात् , स्वर्णकोटि ललौ नहि // 14 // सूरेरनुज्ञया जीर्णोद्धारे, सा व्ययिता तदा। ततो राजवहिकायां, लिखितं धीसखैरिति / / 15 // धर्मलाभ इति प्रोक्ते, दूरादुच्छ्रितपाणये / हरये सिद्धसेनाय, ददौ कोटि नराधिपः // 16 // इति श्लो. 3 विक्रमचरित्र सर्ग प पृ. 63 श्लो. 128 / 29 / 30 तदा कोटी सुवर्णस्य, गुरुभ्यो मेदिनी भुजा / . दत्ता ते जगृहे नैव, निरीहत्वाद् गुरूत्तमैः // 17 //