________________ 466 - सुभाषितसूक्तरत्नमाला . अग्निनी सात जीभो.. काली कराली मनोजवा च, सुलोहिता चैव सुधूमवर्णी / उग्रो प्रदीप्ता च कृपीटयोनेः, सप्तैव कीलाः कथिताश्च जिहूवाः ___ दुर्भिक्षन कारण पश्चार्काः पञ्च भौमाश्च, पश्च सूर्यसुतास्तथा / एकमासे यदायाता-स्तदा दुर्भिक्षसम्भवः // 10 // महाजन कोण कहेवाय? महाजनो येन गतः स पन्था, इति प्रसिद्धं वचनं मुनीनाम् / महाजनत्वञ्च महाव्रताना-मतस्तददिष्टं हि हितं मतं ते // 11 // बोधि वोजन कारण जो च्चिय सुहभावो, खलु सबन्नुमयंमि होइ परिसुद्धो / सो चिय जायइ बीयं, बोहिए तेण णाणेण // 12 // जा चिय गुणपडिवत्ती, सबन्नुनयम्मि होइ पडिसुद्धा / सा चिय जायइ बीयं, बोहीए तेण णाणेण // 13 // ___ अनंत संसारनां कारणो तित्थयरपवयणसुअ-आयरियं गणहरं महिढी / आसायंतो बहुसो, अणंतसंसारिओ होइ // 14 // आचार्यनी आठ संपद् आयार-सुय-सरीरे, वयणे-चायण मई पयोगमई / एए सुसंपया खलु, अट्ठमिआ संगहपरिन्ना // 15 //