________________ 444 सुभाषितसूक्तरत्नमाला 159 जैनेतिहासदर्शकसूक्तानि मुनिओने उपकरण राखबानी शास्त्रीयता उपनीतं कुबेरेण, धर्मोपकरणं ततः / त्यक्तसङ्गोऽप्याददानो, गौतमोऽथेत्यचिंतयत् // 1 // निरवद्यत्रतत्राणे, यदेतदुपयुज्यते। वस्त्र -पात्रादिकं ग्राह्य, धर्मापकरणं हि यत् / / 2 / / छमस्थैरिह पड्जीव-निकाययतनापरैः। सम्यक्प्राणिदया कर्तु, शक्येत कथमन्यथा // 3 // नमि अने विनमिना पिताना नाम अथ कच्छ-महाकच्छ-तनयो विनयान्वितौ / आयान्तौ नमि-विनमि-नामानी तद्वनावना // 4 // श्री अजितनाथस्वामीये पोताना घरदेरासरमां करेली जिनविम्बोनी पूजा. स्वामी ततश्च सुम्नातो. दिव्या भरणवस्त्रभृत् / संपूज्य गृहचैत्यान्त-बिम्बानि श्रीमदहताम् // 5 // शिविकायां सुप्रभायां, निर्षितायां मुरासुरैः। निषसाद मान्नाथ:, पालके शक्रवत्तदा // 6 // शत्रुजयमहात्म्य सर्ग 8 श्लोक 613-114 दमयंतीने निवृत्ति देवीए आपेल भाविशांतिजिन प्रतिमा पगिट्टपुन्नपेरियाए निवुइ देवयाए समप्पिया तीए भावि