________________ 420 सुभाषितसूक्तरत्नमाला पादपूर्ति समस्या सकुण्डलं वा वदनं नवेति। कोइ पंडितनी पूर्ति व्याक्षिप्तचित्तेन मया न ज्ञातं सकुण्डलं वा वदन नवति / / जैनमुनिए करेली पूर्ति संतस्स दन्तस्स जिइंदियस्स, अज्झप्पयोगे-गयमाणसस्स। कि मज्झ एएण विचिंतिएण, सकुण्डलं वा वदनं नवेति // 21 // भोजराजानुं वर्णन अद्य धारा निराधारा, निरालम्बा सरस्वती। पण्डिता रण्डिताः सर्वे, त्वयि भोज दिवं गते // 22 // अद्य धारा सदाधारा, सदालम्बा सरस्वती। पण्डिता मण्डिताः सर्वे, त्वयि भोज भुवि स्थिते // 23 / / भोजराजना राजशासन- भावि कथन पञ्चपञ्चाशद्वर्षाणि, मासान् सप्त दिनत्रयम् / भोजदेवेन भोक्तव्यं, सगौडं दक्षिणापथम् // 24 // . असद् निरुपण एष वन्ध्यासुतो याति, खपुष्पकृतशेखरः। मृगतृष्णाम्भसि स्नातः, शशश्रृङ्गधनुर्धरः // 25 //