________________ 414 सुभाषितसूक्तरत्नमाला एतेषां लोमशश्चापि, दर्शनं मङ्गलप्रदम् / लटा-खञ्जन-चापानां, दक्षिणे गमनं शुभम् // 5 // टिट्टिभः कौशिकश्चापि, वामो राजशुकः शुभः / मयूरश्च तथा श्येनो, दक्षिणाद्वामगः शुभः // 6 // श्रमणस्तुरगो राजा, मयूरः कुञ्जरो वृपः। प्रस्थाने वा प्रवेशे वा, सर्वसिद्धिप्रदायका: / / 7 // पेथडकुमारने मांडवगढमां पेसतां थयेल शुकन प्रविशन् तत्र सोऽपश्य-ट्टामतोऽहिफणोपरि / कारं कारं स्वरं दुगा, लास्यत्रीलामुलालसाम् // 8 // पेथडशाहनी शंका प्रवेशे न शिवाय स्या-द्वामा दुर्गा ऋतस्वरा / किं पुनः कृष्णसर्पस्य, फणोपरि निपपी // 9 // कालदिगास्पदचेष्टा-विशेषमासाहा खगरवादीनि / अशुभानि शुभानि शुभा-न्यशुभानि भवन्ति शकुनानि // 10 // पेथङकुमारने शुक्रननुं फळ कथन सर्वस्य मालबम्यास्य, धनिको धनकोटिभिः। पूज्यमानो भावी त्य, बिम्बमात्रं तु पार्थिवः // 11 // शुभशुकन जंबू-चास-मयूरे, भारदाये तहेव नउले। दसणमेव पसत्थं, पयाहिणे सव्वसंपत्ती // 12 //