________________ सामान्यधर्मस्तानि 325 माता-पिता अने मित्र धर्मज छे, धर्मों महामङ्गलमङ्गभाजां, धर्मः पिता पूरितसर्वकामः / धर्मों जनन्युद्दलिताखिलाति-धर्मः सुहद्वर्धितनित्यहर्षः॥९॥ धर्म विना मनुष्य शोभतो नथी काया हंसविना नदी जलविना दात्रा विना याचकोभ्राता स्नेहविना फलं ऋतुविना धेनुश्व दुग्धं विना / भार्या स्नेहविना पुरं विभुविना वृक्षं च पत्रं विना, दीपः तैलविना निशा शशिविना धर्म विना मानवः // 10 // धर्मथीज बधुंय मले छे धम्मेण कुलप्पसुई, धम्मेण य दिव्वरूपसंपत्ति / धम्मेण धणसमिद्धि, धम्मेण मुवित्थडा कीत्ति // 11 // धर्म विना इच्छित मले तो संसारमा दुःखी कोण होइ शके ? धम्मेण विना जइ चिन्तियाई, लब्भन्ति जीव ! सुक्खाई। ता तिहुयणंमि सयले, कोवि न हु दुक्खिओ हुज्जा // 12 // धर्म माटे चार अयोग्य अने मध्यस्थ योग्य रत्तो दुट्ठो मूढो, पूव्वं बुग्गाहिओ अ चत्तारि / एए धम्माणरिहा, अरिहो पुण होइ मज्झत्थो // 13 // "तस्माज्ज्ञानमयः शुद्धः, तपस्वी भावनिर्जरः / श्लोकाः" धर्मने सारी बुद्धिवालाज जाणी शके प्रतिपच्चन्द्रं सुरभि-नकुलौं नकुलः पयश्च कलहंसः / चित्रकवल्ली पक्षी, सूक्ष्मं धर्म सुधीर्वेत्ति // 14 //