________________ 296 सुभाषितसूक्तरत्नमाला भोक्ता चैत्यधनस्यो-च्चैर्गन्ता दुर्गतिपत्तने / वृद्धिकृच्चैत्यवित्तस्य, निर्वाणपदजाचिकः // 13 // चैत्यवित्तविनाशेन, साध्या अभिगमेन च / कृतेन मुनिघातेन, बोधिलाभः सुदुर्लभः // 14 // विज्ञातजिनधर्मोऽपि, देववित्तस्य भक्षणात् / ईदृग्विपाकस्तदभू-च्चतुर्गतिगतस्य ते // 15 // हा ! मया देववित्तानि भक्षितानि कुबुद्धिना / तैरहं पातकाजीणे, पातितोऽस्मि संविस्तरम् // 16 // देवने चडेल वस्तु वेचवानुं विधान विक्रीय पत्रपूगादि, भान्त्वा सुबहु पत्तने / किं बहुना ? देवतास्त्रं, शुभभावादवीवृधत् // 17 // 125 उपधानविषयसूक्ते उपधानतयो विधिवद, विधाय धन्यो निधाय निजकण्ठे / द्वेधाऽपि सूत्रमालां, द्वेधाऽपि शिवश्रियं श्रयति // 1 // मुक्तिकनीवरमाला, सुकृतजलाकर्षणे घटीमाला / साक्षादिव गुणमाला, माला परिधीयते धन्यैः // 2 // 126 उद्यापनविषयसूक्ते लक्ष्मीः कृतार्था सफलं तपोऽपि, ध्यानं सदोच्चै नबोधिलाभः / जिनस्य भक्तिर्जिनशासने श्रीः, गुगा: स्धुरुधापनतो नराणाम् //