________________ 252 सुभाषितसूक्तरत्नमाला सदं मुणित्ता महुरं अगहें, करिज्ज चित्तं न हु तुट्ठरुटुं / रसम्मि गीयस्स सया सरंगो, अकालमच्चु लहई कुरंगो // 47 // पासित्तु रूवं रमणीण रम्मं, मणम्मि कुज्जा न कयावि पिम्मं / पईवमझे पडई पयंगो, रूवाणुरत्तो हवई अणंगो // 48 // जलम्मि मीणो रसणारसेणं, विमोहिओ नोगहिओ भएणं / पावाओ पावेइ स तालुवेहं, रसाणुराओ इय दुक्खगेहं // 49 // गइंदकुंभत्थलगंधलुद्धो, इंदिदिरो घाणरसेण गिद्धो / हहा मुहा मच्चुमुहं उवेई, को गंघगिद्धिं हियए वहेई // 50 // फासिंदियं जो नहु निग्गहेई, सो बंधणं मुद्धमई लहेइ / दप्पुद्धरंगो जह सो करिंदो, खिवेइ अन्यं वसणम्मि मंदो // 51 // इक्कोवि इक्को विसओ उदिन्नो, दुक्खं असंखं दलई पवन्नो। जे सबहा पंचमु तेमु लुना, मुद्धाण तेसिं सुगई निसिद्धा॥५२॥ अईव दुहा विसया विसाओ, पच्छा भवे जेहि महाविसाओ। जेहिं पया इंति परवसाओ, न सेवणिज्जा खलु ते रसाओ। तित्थंकराणं निउणा पमाणं, कुणंति जे उज्झिय चित्तमाणं / सव्वं पितेसिं किरियाविहाणं, संजायइ दुक्खसहस्सताणं // 54 // अचंतपावोदयसंभवाओ, जे भीरुणो भव्यगणा भवाओ। तेसिं सुहाणं सुलहोउवाओ, नो संभविज्जा भवसंनिवाओ॥५५॥ धणं च धन्न रयणं सुवन्नं, तारुण्णरूवाइ जहित्य अन्नं / / विज्जु व्व सव्वं चवलं खु एयं, धरेह भव्या हियए विवेयं //