________________ 136 सुभाषितसूक्तरत्नमाला 42 लोकस्वरूपभावनासूक्तानि लोए असंखजोयण-माणे पइजोयणंगुला संखा / पइ तं असंखअंसा, पइअंसमसंखया गोला // 1 // गोले असंखनिगोओ, सोऽणंतजिओ जिवोऽसंखपएसो / असंखे पइपएसं, कम्माणं वग्गणाऽणंता // 2 // पइवग्गणणंता अणू य पइअणु अणंतपज्जाया / एयं लोगसरूपं, भाविज्ज तहत्ति जिणवुत्तं // 3 // निगोदनु स्वरुप गोला य असंखिज्जा, असंखनिगोओ य हवइ गोलो। इकिमि निगोए, अणंत जीवा मुणेयव्वा // 4 // सव्वोवि किसलओ, उग्गममाणो अणंतओ भणिओ। सो चेव विवढंतो, होइ परित्तो अणंतो वा // 5 // अत्थि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसाइपरिणामो / उप्पजति चयंति य. पुणोवि तत्थेव तत्थेव // 6 // सन्त्यनन्ता जीवा यन प्राप्तस्त्रसादिपरिणामः / . उत्पद्यन्ते म्रियन्ते च पुनरपि तत्रैव तत्रैव // 7 // तेऽप्यनन्तानन्ता निगोदवासमनुवसन्ति / अहिंथी जेटला मोक्षमां जाय तेटला अनादिनि गोदमांथी व्यवहार राशिमां आवे सिझंति जत्तिया किर, इह संववहारजीवरासिमझाओ / इंति अणाइवणस्सइ-रासीओ तत्तिआ तमि // 8 //