________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला रको राजा नृपो रकः, स्वसा जाया जनी स्वसा। दुःखी सुखी सुखी दुःखी, तेनासौ निर्गुणो भवः // 25 // नत्थि किर सो पएसो, लोए वालग्गकोडिमित्तोवि / जम्मण-मरणाबाहा, जत्थ जिएहिं न संपत्ता // 26 // 37 चतुर्गत्यात्मकसंसारदारुणसूक्तानि दुर्गन्धतोऽपि यदणोहि पुरस्य मृत्युरायुषि सागरमितान्यनुपक्रमाणि / ' स्पर्शः खरः क्रकचतोतितमोमितश्च, . दुःखावनन्तगुणितौ भृशशैत्यतापौ // 1 // तीवा व्यथाः सुरकृता विविधाश्च यत्राऽऽजन्दारवैः सततमभ्रभृतोऽप्यमुष्मात् / किं भाविनो न नरकात् कुमते ! बिभेषि, यन्मोदसे क्षणसुखैर्विषयैः कषायैः // 2 // बन्धानिशं वाहनताडनानि, क्षुत्तृड्दूरामातपशीतवांतः / निजान्यजातीयभयापमृत्यु-दुःखानि तिर्यविति दारुणानि / 3 // मरणसमं नत्थि दुःखं, खुहासमा वेयणा नत्थि / पंथसमा नस्थि जरा, दालिद्दसमो पराभवो नत्थि // 4 // अच्छिनिमीलणमित्तं, नत्थि मुहं दुःखमेव पडिबद्धं / नरए नैरइयाणं, अहोनिसं पच्चमाणाणं // 5 //