________________ वीतरागस्य यथार्थवादः धर्मयौवनकालोऽयं, भवबालदशाऽपरा / अत्र स्यात् सत्क्रियारागो-ऽन्यत्र चाऽसत्क्रियादरः // 20 // जैनीमाज्ञां पुरस्कृत्य, प्रवृत्तं चित्तशुद्धितः। संवेगगर्भमत्यन्त-ममृतं तद्विदो विदुः // 21 // पासत्थाई बंदमाणस्स, नेव कित्ति न निज्जरा होइ। कायकिलेसी एमेव, कुणई तह कम्मबन्धं च // 22 // आउत्तया जत्न य नत्थि काई / इरियाइ भासाइ तहेसणाए / आयाणनिक्खेव दुगंछगाए, न वीरजायं अणुजाइ मग्गं // 23 // एकाङ्गः शिरसी नामे, चङ्गश्च करयोर्द्वयोः / त्रयाणां नमने पङ्गः, करयोः शिरसस्तथा // 24 // चतु) करयोर्जावा-नमने चतुरङ्गकः / शिरसः करयो न्यो:, पञ्चाङ्गःपञ्चमो मतः // 25 // ___“जो अकिरियाबाई सो भविओ अभविओ वा नियमा कण्हपक्खिओ। किरियाबाई नियमा भविओ, नियमा मुक्पविश्वओ। अंतोपुग्गलपरिअट्टस्स नियमा सिज्ज्ञइ सम्मट्टिी या मिच्छादिट्टी वा हुज्जा" // 26 // हयं नाणं कियाहीगं, या अन्नाणओ किया। पासता पंगुलो दही, धावमागो अ अंधओ // 27 // 33 वीतरागस्य यथार्थवादः अपक्षपातेन परीक्षमाणा-द्वयं द्वयस्याऽप्रतिम प्रतीमः / यथास्थितार्थप्रथनं तवैत-दस्थाननिर्बन्धरसं परेषाम् // 1 //