________________ 54 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य स्व-धर्म-क्रियया विषयनि तीर्थ्यन संतर्पयन नृपः॥ अर्थात राजा ने विभिन्न धर्मों वैष्णव, जैन तथा बौद्ध के अनुयायियों की रक्षा की और इस तरह अपने पावन कर्म से इस पृथ्वी को पवित्र तथा तृप्त किया। उपर्युक्त पद के दर्पण में चालुक्य सम्राट तथा साम्राज्य का, (जिन्होंने सभी धर्मों की रक्षा का समर्थन किया तथा उसके अनुयायी बने) सही प्रतिबिंब मिलता है। इस मत में अन्य धर्मों के प्रति घृणा को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था तथा धार्मिक सौहार्द बनाए रखना प्रशासन का मूल ध्येय था और उसका अनुपालन भी किया जाता था। जैनधर्म की अन्य विचारधारा के प्रति दृष्टि अनेकान्त तथा स्यादवाद के तर्क पर आधारित थी। जैनधर्म के लिए सामाजिक वरीयता प्रबल तथा स्पष्ट थी। कोल्हापुर (महाराष्ट्र) की संस्कृत तथा कन्नड लिपि में लिखे दसवीं सदी के पुराने पत्रों में पुलकेशी प्रथम सत्याश्रय रणराग का पुत्र तथा जयसिंह का प्रपौत्र का उल्लेख है। रुद्रनिल, सेंद्रक परिवार का समियार तथा पुलकेशी के सामंत कुहंडी जिले के राजपाल को . अलकटक नगर (किसुवोळल, पट्टदकल्ल) के जिनालय का भार सौंपा गया था। समियार ने अपने सम्राट की अनुमति से कुछ ग्राम तथा जमीन दान की थी। शिलालेख में कई जैन मुनियों का भी उल्लेख है। (JRAS. VOL. V.P/343.f :IA - :VOl: VII. pp 209-17.) / राजा विनयादित्य ने शिग्गाव के शिलालेख (707) में यह उल्लेख है कि उसने किसुवोळाल से बनवासी तक की यात्रा मात्र इसीलिए की थी कि वह आळपाओं के राजा चित्रवाहन तथा उसके भाई से भेंट करें। परवर्तियों की प्रार्थना पर सम्राट ने पुलिगेरे में स्थित जिनभवन को गुड्डिगेरे ग्राम दान में दिया था। विक्रमादित्य चतुर्थ के काल में कन्नड भाषा में लिखित गुडिगेरी स्थान में स्थित शिलालेख दिनांक 1076-77 में यह कहा गया है कि . चालुक्य-चक्रवर्ती विजयादित्य वल्लभानुजेयप्पा श्रीमत कुंकुम महादेवी पुरिगेरेयल्लु माडिसिद आनेसेज्जेय बसदी। अर्थात आनेसेज्जय बसदी तो पुलिगेरे में है उसे चालुक्य चक्रवर्ती विजयादित्य की छोटी बहन कुंकुम महादेवी द्वारा बनवाया गया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org