________________ CE H SASANSAR तृतीय अध्याय नंतर के शासक car C HUDIO कर्णाट देश ने पहली बार जैनों की चक्रवर्ती राजा की पौराणिक परिकल्पना को पुलकेशि द्वितीय के अद्वितीय दिग्विजय में साकार होते देखा। परवर्ती दंतकथाओं में पौराणिक चरित्र नायक के समान ही उसकी उपलब्धियों तथा जीवन का खूब बढा-चढाकर वर्णन किया गया है। रविकीर्ति और पुलकेशि, एक आश्रित कवि और दूसरा अधिपति, दोनों की आत्मियता ने परवर्ती सिंहासनाधिष्ठ शासकों को विद्वत्जनों से साहचर्य और सौहार्द बनाए रखने की प्रेरणा दी। अन्य उल्लेखनीय बातें यह थीं कि चालुक्य तथा जैनों में सौहार्द था, दोनों लोकप्रिय थे और जनता के स्नेह से संरक्षित थे। हरपनहळ्ळी तथा उसके आसपास की पहाड़ी अरनळ्ळी चट्टानें जैनों की प्रार्थनाओं से गूंज उठती थीं। शिलालेखों के विवरण इस बात का समर्थन करते हैं कि सातवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इन पहाड़ी चट्टानों पर कई जैन मुनियों ने बडे धैर्य के साथ सल्लेखन का व्रत धारण किया और मृत्यु को आमंत्रित किया। विधिलिखित के अनुसार कुब्ज विष्णुवर्धन (615-33) चालुक्यों की एक अन्य शाखा का संस्थापक बना। अपनी राजनीतिक पटुता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org