________________ 2 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य महान चालुक्यों ने, जिनका पूर्व तथा पश्चिम पर पहले से ही प्रभूत्व था, और जिन्हें निष्ठावान सेवकों का साथ था, रातोंरात राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियों का पुनर्गठन किया। दक्षिण के स्वर्ग की मेहराब पर एक नया ध्रुवतारा उदित हो रहा था, जिसने दक्षिण भारत के राजनीतिक नक्शे का नव-निर्माण किया। कदंबों के उत्तराधिकारी चालुक्य ही दक्षिण के सांस्कृतिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों की कायापलट के उत्तराधिकारी थे। दक्षिण पश्चिम बादामी पर कदंब शासन कर रहे थे, जो कि बाद में चालुक्यों का केंद्र स्थान बना। छठी सदी के मध्य बनवासी के कदंबों से राज्य छीनकर बादामी के चालुक्य परम राजसी राजवंश के रूप में उदित हुए। उन्होंने बड़ी सफलता से उत्तर में नर्मदा तथा दक्षिण में कावेरी नदी के मध्य आनेवाले विशाल भू-भाग पर अपना शासन जमाया। आंध्र-प्रदेश के अनंतपुर, गुंटूर, कर्नूल, तथा वेलूर जिले तथा पश्चिम के अरबी समुद्र का खाडी प्रदेश चालुक्यों का भौगोलिक सीमा क्षेत्र था। ऐहोळे, बादामी, किसूवोळल (पट्टदकल) तथा पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर) उनका केंद्रस्थान था। वराह चालुक्यों का राज-चिह्न था। उल्लेखनीय है कि जैन परंपरा के तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ का राज-चिह्न भी वराह था, तो चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ का भालू (सेही) था। इस राजवंश के पूर्वजों में राजसिंह परिवार के प्रथम जनक थे। जिनका संबंध * राष्ट्रकूटों के राजा कृष्ण के पुत्र इंद्र से था। विद्वानों ने राष्ट्रकूटों के उद्गम स्थल का भी पता लगाया है और वह है, महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित लातूर शहर। लातूर की व्युत्पत्ति रटनुर अर्थात रट्टों के शहर, से मानी जाती है। राष्ट्रकूटों का लातूर से संबंध की जानकारी उस समय में उपलब्ध शिलालेखों से प्राप्त होती है। मानपुर राष्ट्रकूट प्राचीन परिवार है जो अपनी राजधानी मानपुर (महाराष्ट्र-सतारा) से शासन किया करते थे। मानपुर यह नाम भी उक्त राजवंश के संवर्धक मानांक के नाम पर ही दिया गया है। दक्षिण महाराष्ट्र के कोल्हापुर, पूणे, सातारा, सोलापुर और उत्तर कर्नाटक का विजापुर जिला आदि उनके अधीन थे। उन्होंने चौथी से छठी सदी तक शासन किया। मानपुर राष्ट्रकूटों का पतन ही चालुक्यों के उदय का कारण बना। मानपुर के राजा अभिमन्यु (470-90) के मातहत जयसिंह ने कृष्ण (490-510) के पुत्र इंद्र (510-30) को पराजित किया और मानपुर के राष्ट्रकूटों से उनकी सत्ता छीन ली। देज महाराज (530-50) जयसिंह के प्रपौत्र पुलकेशि प्रथम के समकालीन थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org