________________ प्रथम अध्याय साम्राज्य युग का उदय छठी सदी के मध्य से लगभग दो सौ वर्षों से भी अधिक कालावधि के दौरान, दक्षिण का इतिहास वास्तव में वातापी के चालुक्य, कांचि के पल्लव तथा मदुर के पांडयों की सत्ताशक्तियों के डावांडोल होते राजवंशो की संघर्ष गाथा ही है। दक्षिण भारत के तीन प्रभूसत्ता संपन्न राज्यों में प्रमुख रूप से चालुक्यों की सत्ता, महान सत्ता के रूप में उदित हुई। बादामी के प्रमुख घरानों के अलावा चालुक्यों ने अन्य दो भिन्न शाखाओं की खोज की। एक शाखा थी लाट के चालुक्यों को की तो दूसरी शाखा थी वेंगी चालुक्य अर्थात पूर्वी चालुक्य। कदंबों के युग (345-540) के अंत के साथ-साथ एक और महान राजवंश के बीज पडे जिससे एक नए युग के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। बादामी तथा वातापी के चालुक्यों ने (540-750) अवसरों का खात्मा कर अपने खुद के युग का शुभारंभ किया, जिससे दक्षिण के धार्मिक-राजनीतिक तथा सामाजिक सांस्कृतिक संस्कारों की आत्मा का स्वरूप ही बदल गया। राजनीतिक परिस्थितियाँ इसकी गवाह देती हैं कि किसप्रकार आत्मतुष्ट वैयक्तिकता के प्रतिस्पर्धात्मक आधिपत्य में परिवर्तन होकर उसका कायापलट हुआ था। उदीयमान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org