________________ 178 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य अबतक हम ने इन तथ्यों की जानकारी प्राप्त की है कि जिन राजवंशों ने कर्नाटक का शासन किया उनमें से बादामी के चालुक्य शक्तिशाली राजवंश था। उन्होंने एक सशक्त तथा कौशलपुर्ण राजवंश का निर्माण किया जो दो सौ साल तक अजेय बने रहे। चालुक्यों ने अपनी सेना को संपूर्ण कर्नाटक की फौज का कर्णधार बनाया, जो कि निश्चित ही बुद्धिसंगत था। कवि तथा पुरालेख, पुलकेशी द्वितीय के शासन का संदर्भ देते हैं जो कि चक्रवर्ती की संकल्पना का गहरा पुट है। इसीप्रकार यह भी उल्लेखनीय है कि वे कर्मठ तथा समृद्ध कर्नाटक के प्राचीन शिल्पकार थे जिन्होंने लोकप्रियता के दालान में आला खुदवाया। कला, शिल्पकला तथा साहित्य चालुक्यों के ही छत के नीचे फूला फला। उन्होंने अपना प्रभुत्व सीमापार फैलाया, कर्नाटक की संस्कृति को दक्षिण पूर्व आशिया तक फैलाया। कल्याण, वेंगी, वेमुलवाड के चालुक्य प्रमुख स्तम्भ की परवर्ती शाखाएँ थीं। __ अनुवंशिक राजतंत्र तथा जेष्ठ पुत्र को ही उत्तराधिकारी बनाना सरकार का प्रचलित रूप था। जब राजगद्दी को कोई उत्तराधिकारी नहीं मिलता तब कुछ विशेष परिस्थितियों में यह अधिकार किसी योग्य व्यक्ति को दिया जाता है। ऐसे में उस व्यक्ति की सक्षमता, योग्यता तथा चरित्र एक बहुत बडी कसौटी होती है। उदाहरणार्थ, विक्रमादित्य प्रथम, भले ही पाँच भाइयों में चौथे क्रमांक का था किंतु उसने अपनी कुशलता, सक्षमता तथा बल के कारण चालुक्यों की राजगद्दी पर अपना अधिकार पाया। पुलकेशी द्वितीय का अभिवादन, दक्षिणापथ-पृथ्वियाःस्वामी से किया जाता था, जिसकी पूर्ण उपाधि थी, सत्याश्रय-श्रीपृथ्वी-वल्लभ-महाराजाधिराज-परमेश्वरभट्टारक, जिसने एक चक्रवर्ति की तरह कर्नाटक प्रदेश को चक्रवर्ति क्षेत्र का केंद्रीय प्रदेश बना दिया। उसके बाद कर्नाटदेस का सम्राट, वल्लभ की उपाधि से जाना जाने लगा तथा शाही सेना कर्नाटक बल के नाम से जानी जाने लगी। इसप्रकार कर्नाटक का साम्राज्य बना रहा केवल राजवंश बदलते गए और वे कर्नाटक के साम्राज्य पर शासन करते रहे। पुलकेशी द्वितीय के चले जाने के बाद एक राजनीतिक रिक्तता छायी रही। तथापि, कर्नाटक के राजनीतिक भूगोल पर छाए बादलों को दूर करने के लिए आत्मविश्वासी विक्रमादित्य फिर एकबार अपनी शक्तिग्रहण कर ली ताकि वे चालुक्यों के आधिपत्य पुनर्स्थापित कर पायें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org