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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 177 दक्षिण की सीमाओं को फैलाने का दुर्लभ वैशिष्ट्य अर्जित किया। अतः कई छोटे मोटे शासन विशाल चालुक्यों के साम्राज्य में मिल गए। ___ कर्नाटक के दुर्ग कुल चार भागों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं जैसे जलदुर्ग गिरिदुर्ग, वनदुर्ग, तथा भूमिदुर्ग। बादामी में पाये जानेवाले दुर्ग गिरिदुर्ग कहलाते हैं। बादामी शहर के बाह्यवृत पर जो दो मजबूत दुर्ग बने हैं वे उत्तर तथा दक्षिण में अच्छी तरह से बने हुए हैं। सामान्यतः इन दुर्गों को बावन बंडे कोटे (बावन पत्थरोंवाला दुर्ग) तथा रणमंडल कोटे (युद्धभूमि दुर्ग) कहते हैं। दो पहाडियों के मध्य जो सरोवर बना है वह भी उतना ही प्राचीन है जितना कि दुर्ग है, भले ही पहाडी ना भी हो। बडि बडि चट्टानों पर बने दुर्ग पत्थर से जोडे गए हैं। जो दक्षिण में आज भी विद्यमान है। पुलकेशि प्रथम, दुर्ग के प्रथम वास्तुकार ने ई. 543 में पहाडी की ढलान के मध्य भाग में बनवाया जिससे इस दुर्ग को झूलते दुर्ग का सौंदर्य प्राप्त हुआ। बाद में उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रकूटों ने भी इन दुर्गों में कुछ न कुछ जोडा और बढाया। . भारतीय कुल के चालुक्य, अपने अंधकार से जाग उठे, इसके लिए वीर जयसिंह (पुलकेशि प्रथम के दादा) को धन्यवाद देना चाहिए। पुलकेशी प्रथम के परदादा जयसिंह, अभिमन्यु के सामंत ने मानपुर के राष्ट्रकूटों का साम्राज्य कृष्ण के पुत्र इंद्र को पराजित कर छीन लिया। देज महाराज, कृष्ण के परपोते और संभवतः इंद्र के पुत्र ने चालुक्यों के आधिपत्य को संभाला। दो सौ साल बाद इतिहास दुहराया गया और फिर एक बार राष्ट्रकूटों ने अपना साम्राज्य पाया और खो भी दिया। पहले उन्होंने अपना छोटा सा प्रदेश खो दिया, किंतु अब दंतिदुर्ग तथा उसके पुत्र ने पुनः उस विशाल साम्राज्य को पाया, जैसे कि मूल के साथ सूद भी.पा लिया हो। इसी के साथ, बडे तथा विद्वान उत्ताराधिकारी शासकों ने उसे एक राजसी साम्राज्य बना दिया, जो एक हृष्ट-पुष्ट साम्राज्य की रीढ़ की हड्डी जैसे थे। यह तो सर्वविदित है कि कई चालुक्य पुरालेख प्रमुख शासकों के शासनकाल के दौरान का हैं। कर्नाटक में शक वर्ष का नाम के साथ प्रथम उल्लेख का श्रेय पुलकेशी प्रथम के बादामी के चट्टान पर लिखे गए पुरालेखों को जाता है, जिसकी तिथि है शक 465 (सीई 543), जिसमें राजा द्वारा वातापी के पहाडी की मोर्चेबंदी का उल्लेख किया गया। कहीं पर देवसेना के हिस्से बोरला पुरालेख को प्राचीन माना गया है, वाकाटक प्रमुख, जिसने शक वर्ष का उल्लेख शक वर्ष 380 किया है जो कि ई. स. 458 के बराबर है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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