________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 85 में यह अपनी चरमसीमा पर पहूँची तथा होयसळों के शासन में अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी। प्रारंभ में चालुक्यों ने पाषाण-शिल्पकला की समृद्ध परंपरा को बनाए रखा। उन्होंने प्रदेश के नरम पाषाणों की मूर्तियों को शिल्प के लिए चुना, जैसे, बादामी तथा ऐहोळे में स्थित जैन गुफामंदिरा लेकिन तुरंत वे भी इमारती मंदिर बनवाने लगे। इसके लिए वातापी तथा आसपास के प्रदेश से नरम रेतेली च ानों को खोदकर पत्थर लाए गए जिससे चालुक्यों के रचनाकारिता की मुहर छोड सके। उत्खननित जैन गुफाओं तथा विद्यमान भवन-मंदिरों में निम्नलिखित गुफाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसकी चर्चा क्रमशः की जाएगी। 1. जैनगुफा (मेण बस्ति) ऐहोळे, छठी सदी के अंतिम त्रैमासिक संभवतः 580 2. जैनगुफा संख्या 4 बादामी 595 3. मेगुडी, जिनेन्द्रभवन, ऐहोळे 634-35 शिल्पकला की इस शैली को चालुक्य शैली का नाम देते समय हम इसमें अन्य शैलियों के सम्मिलन की उपेक्षा नहीं कर सकते। यह एक संश्लिष्ट शैली या फिर मूल शैली भी हो सकती है। यह तो कलाकार थे, जिन्होंने अपने कौशल से शैली को रूपायित किया किंतु यह शैली तत्कालीन शासकों के नाम से जानी जाएगी। जैनगुफा-पूर्ववृत्त ___ पाषाण शिल्पकला का इतिहास जैनगुफा मंदिरों के विवरण के बिना समझा नहीं जा सकेगा और ना ही वह पूर्ण है। भव्य दिव्य जैनगुफा मंदिरों ने पाषाण शिल्पकला के पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जमीन में खुदवाई गई कड़ी सख्त पाषाण शैय्या निर्माण की प्रक्रिया की पहल ने गुफा मंदिरों के निर्माण के लिए मार्ग खोल दिया। जैनमुनियों ने महावीर के समय से ही प्रार्थना तथा आश्रय हेतु प्राकृतिक गुफाओं की खोज की। इस प्रकार की पाषाण शैय्यावाली गुफाएँ तमिलनाडु में ई.पू. तीसरी सदी से पायी गयी। भारत की 1200 गुफाओं से 200 गूफाँएँ जैनों से संबंधित थीं। जैनगुफा अथवा पाषाण शिल्पकला का विवरण एक तरफ से उदयगिरि की हाथी गुफा तथा. खंडगिरि गुफाओं (ओरिसा?भूवनेश्वर) से प्रारंभ होता है, जिसका उत्खनन कलिंग राजा खारवेल (ई.पू. दूसरी-पहली सदी) ने करवाया था। जैनगुफा सरगाह (गमनस्थान) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org