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________________ बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य | 81 एक अन्य शिलालेख (EI.Vol. XII-329) में यह विस्तार से कहा गया है कि कुंतल प्रदेश में पुलिगेरे 300 तथा बेळवोल 300 एकदम सुंदर प्रांत थे, तथा भारत महीमंडल के आभूषण थे और पुलिकर प्रदेश की जनता भी शुद्ध तथा पारदर्शी शीशे के समान साफ थी। पुलिगेरे 300 की भौगोलिक सीमा में पुलिगेरे महत्वपूर्ण शहरों में से एक था जो मंदिरों के ऐश्वर्य तथा व्यापार से समृद्ध था। ___बनवासी के आदिकदंबों ने श्वेतपट्ट * महाश्रमण संघ का (श्वेताबंर पंथ) का समर्थन किया था। आदिकदंबों के काल के लेखक विमलसूरि (473) ने अपने प्राकृत महाकाव्य पउमचरिय में श्वेतपट्ट पंथ का उल्लेख किया है। किंतु बादामी के शासनकाल के दौरान इसका प्रतिसरण हुआ। कुंतलनाडु में यह क्यों और कैसे पीछे हटा यह स्पष्ट नहीं है। इसके प्रतिसरण का कारण संभवतः अनुयायियों तथा राजनीतिक प्रोत्साहन का अभाव रहा होगा। . देवगण के आभूषण ध्रुव देवाचार्य (सातवीं सदी) देवगण तिलक ने जैन संघ - का नेतृत्व किया और प्रार्थना मंदिरों के संपोषण के लिए मजबूत नींव रखी। उनके शिष्य चिकण देवाचार्य ने रामदेवाचार्य को अपना शिष्य बना लिया। रामदेवाचार्य के मुनि शिष्य जयदेव पंडिताचार्य ध्रुव देवाचार्य के नेतृत्व को स्वीकारा। मुनियों की उपस्थिति तथा नेतृत्व के कारण पुलिगेरे क्षेत्र ने साम्राज्य के अन्य समकालीन मठों से अधिक प्रसिद्धी प्राप्त की थी। सेंबोळल ग्राम का उपहार, बेळवोल 300 उपभाग में स्थित हडगिले ग्राम का ग्रामदान ‘सर्वबाधा परिहारम ददऊ दान' की इस प्रकृति की कुछ घटनाएँ जैन प्रार्थना-स्थलों का सामाजिक प्रतिष्ठा को ही दर्शाती है। मूर्तिपूजा का प्रसार मंदिर संस्था के होने का संकेत करता है जो बस्ति या बसदी के नाम से जाने जाते हैं। बस्ती इस शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत वसती से ही हुई है जिसका अर्थ जैन मंदिर के रूप में लिया जाने लगा। तत्कालीन शिलालेखिय स्त्रोतों ने जैन मंदिर के निर्माण, जिन का पवित्रीकरण तथा अन्य गौण प्रतिमाओं का उल्लेख किया है। आडूरु, ऐहोळे बादामी, पुलिगेरे जैनों के आध्यात्मिक भाव तथा भक्ति की प्रधानता के साक्ष्य है। पूर्व मध्यकाल की सामाजिक धार्मिक गतिविधियों ने एक ऐसी मजबूत नींव रखी कि जिससे आने वाले वर्षों में मंदिर निर्माण की प्रक्रिया ने जोर पकडा। जिन तथा अन्य आराध्यों की पूजा-प्रार्थना वैयक्तिक तथा सामाजिक दोनों स्तरों पर थी। इस युग में पार्श्व, महावीर बाहुबलि, शांतिनाथ तथा संभवतः आदिनाथ और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004380
Book TitleBahubali tatha Badami Chalukya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagarajaiah Hampa, Pratibha Mudaliyar
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan tatha Anusandhan Sanstha
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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