________________ xii | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य रूप दिया। इस आयु में भी उन्होंने दिन में लगातार चार चार घंटे बैठकर मेरी शंकाओं का निरसन किया और अंततः यह कार्य पूर्ण हुआ। __ जैन धर्म तथा चालुक्य साम्राज्य पर आधारित उक्त पुस्तक कर्नाटक के इतिहास में अपना एक महत्वपूर्ण अध्याय जोडती है। चालुक्यों ने छठी सदी से लेकर आठवीं सदी के मध्य तक बादामी में रहकर शासन किया और पूरे दक्षिण में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जबकि बाहुबलि का कर्नाटक के इतिहास में अद्वितीय स्थान है। विशेष अनुपात में बनी बाहुबलि की प्रतिमाएं केवल यहीं मिलती है। बाहबलि का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि साहित्यिक महत्व भी है। दो महान कवियों के महाकाव्यों के वे चरित नायक थे। पहला संस्कृत कवि जिनसेनाचार्य लिखित पूर्वपुराण तो दूसरा कन्नड भाषा के दरबारी कवि पंप लिखित आदिपुराण। वास्तव में बाहुबलि कर्नाटक में गोम्मट के नाम से जाने जाते हैं, जो कि दिंगबर जैन धर्म में विशेष लोकप्रिय थे। इसी पर आधारित बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य इस पुस्तक में नागराजय्य (हंपना) जी ने बाहुबलि के प्राचीन उपलब्ध शिल्प, जैन शिल्पकला तथा कर्नाटक के शाही शासक बादामी के चालुक्यों का इतिहास दर्ज किया है। ____ मैं हंपना जी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूँगी कि उन्होंने विश्वास के साथ मेरे हाथ में अपनी पुस्तक सौंपी। सर, आभारी हूँ। __ उक्त पुस्तक के अनुवाद की प्रेरणास्त्रोत प्रो. ललिताम्बा के प्रति भी मैं आभारी हूँ जिनके कारण मैं हंपना जी से सृजनात्मक स्तर पर जुड पायी हूँ। . एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति जिनके प्रति आभार व्यक्ति करना चाहूँगी वे हैं बेलगाँव के श्री जोडट्टी जिन्होंने पांडुलिपि को सूक्ष्मता के साथ पढा है और आवश्यक जगहों पर सुधार किए हैं जिससे इस पुस्तक को एक परिपूर्णता प्राप्त हुई है। सर, मैं आपके प्रति अपने आभारी हूँ। मूल अंग्रेजी में लिखी इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद सुधी पाठकों के समक्ष रखने में प्रसन्नता हो रही है। इति नमस्कारान्ते। डॉ. प्रतिभा मुदलियार प्रोफेसर, हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री मैसूर-६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org