________________ 64 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य तत्कालीन अभिलेख में आता नहीं है। सेन संघ के दो धर्मगुरु आदिसेन पंडित तथा देवेन्द्रसेन पंडित के विद्यमान नाम यह निश्चित करते हैं कि. 1. सेन संघ का जन्म कर्नाटक में हुआ। 2. सेन संघ बादामी चालुक्यों के काल में अस्तित्व में आया। 3. दक्षिण से उत्तर में उसका प्रसार हुआ। 4. राष्ट्रकूटों के युग में वह अपनी भव्यता की चरमसीमा पर पहुंचा था। चतुर्विध संघ कई केंद्रों में फला फूला। निर्गंठ के संप्रदाय की धर्म सभा में इसका समावेश किया गया, शिलालेख मूलसंघ को सबसे उत्तम बताते है, देसिगण, शिरोबिंदु था। मूलसंघ का कोंडकुंदान्वय जैनधर्म में अत्यंत प्राचीन है। मूलसंघ मुनियों की प्रभुत्वपूर्ण संस्था जिसका संदर्भ कई शिलालेखों में आया है, वह महावीर द्वारा स्थापित की गई थी। इंद्रभूति गौतम पहला धर्मगुरु था। फिर भद्रबाहु उसे दक्षिण लेकर आया फिर वह कई गणों तथा गच्छों में विभाजित हुआ। कोंडकुंद आचार्य धर्माधिकारी ने निश्चित समूह को समेकित कर महासंघ का निर्माण किया जो दक्षिण की दुर्भेद्य शक्ति थी। (नागराजय्या हंप.- जैन कारपस ऑफ कोप्पल . इनस्क्रिपशन : 1999: P. 30). संभवतः कर्नाटक के मूल संघ का पहला उल्लेख बादामी चालुक्य राजवंश के विनयादित्य के शासन काल में हुआ होगा। मूलसंघान्वय देवगण तिलक ध्रुवदेवाचार्य धर्मोपदेशातं (SII:XX. No. 4. A.D. - 683 : PuligeRe, p.-3) मूलसंघ का मूल नाम था 'निग्रंथ महाश्रमण संघ' था। जब द्रविड संघ तथा काष्ठसंघ अपनी आवश्यकता के कारण अपने मूल तने से अलग हुए तो मूल शाखा का मूल संघ के नाम से पुनः नामकरण किया गया। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र ने मानक समय गणना के लिए शालिवाहन (सातवाहन) शक पद्धति का अनुसरण किया जिसका परिलक्षित बिंदु था ई.स. 78. शक प्राचीन सीथिया (काले सागर के उत्तर प्रदेश का निवासी) जनजाति के थे जिन्होंने गुजरात, कठियावाड प्रदेश पर अपना प्रभूत्व बनाए रखा जो जैनधर्म का मजबूत स्थान था तथा जैनधर्म के समर्थक। जैनमुनि सर्वनंदी ने पल्लराग सिंहवाहन के कार्यकाल (436-60) के द्वितीय वर्ष में 25 अगस्त 408 को कांची में ब्रह्मांडविज्ञान पर (निग्रंथ प्रतिनिधि नियमाकुल पाय) लोकविभाग पूर्ण किया था, जिसमें उसने शक वर्ष 380 (अर्थात 458 ) का उल्लेख किया है। जैन धर्मगुरुओं तथा विद्वानों को इस समय गणना के प्रति एक लगाव सा हो गया था और उन्होंने दक्षिण में धर्म मत के प्रचार-प्रसार में स्वयं को ढाल दिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org