________________ 58 | बाहुबलि तथा बादामी चालुक्य दान देने की परंपरा में गोदान?गोसास (गोसहस्त्रदान) बहुत ही पवित्र तथा अनोखा माना जाता था। गोसास कल्लु (अर्थात गोदान का स्मारक पाषाण) पर गोदान का विवरण दर्ज है। कर्नाटक में लगभग एक सौ गोसास के पाषाण विद्यमान है। हाल ही में प्राप्त गोसास की सबसे वैशिष्ट्यपूर्ण बात यह है कि वे क्रम में सबसे पहले के हैं तथा कन्नड भाषा तथा लिपि में लिखे गए हैं और जिनका जैनों से संबंध रहा है। मल्लेनहळ्ळि (शिमोगा जिला, शिकारपुर तालुका) के गोसास का ऐतिहासिक महत्व यह है कि वे लगभग 30 की संख्या में है, जिसके लिए किसी अतिशयोक्ति की आवश्यकता नहीं है। एक जैन गोसास राजा कीर्तिवर्म द्वितीय के काल का है तथा अन्य राष्ट्रकूटों के युग के है। कीर्तिवर्म का अधिनस्थ दोसिर 760 में बनवासी 12,000 पर शासन कर रहा था। क्रमानुसार दूसरे गोसास 760 के हैं, जो चालुक्यों के निकास तथा राष्ट्रकूटों के प्रवेश का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि सेनवार (सेनावर) के मारक्केयरस बनवासीनाडु का राजपाल था तथा कृष्ण प्रथम उसका अधिपति था। आदित्यसेन पंडित तथा देवेन्द्रसेन पंडित दोनों मर्मज्ञ जैनगुरु शिमोगा जिले के शिकारिपुर तालुका में स्थित मुत्तळ्ळि ग्राम के सेनावर प्रमुख के गोसास के प्राप्तकर्ता थे। कीर्तिवर्म द्वितीय के समय का अण्णिगेरी में स्थित स्तंभ यही कहता है कि जिनालय के सामने वाला स्तंभ गोसास की निशानी के रूप में काळ्ळियम्मा गामुंड के द्वारा बनवाया गया था। . पुलिगेरे, चारों युगों में सबसे प्राचीन, प्रसिद्ध तथा सम्मानित शहर, और पुलिगेरे 300 उपभागों की राजधानी का शहर था। इसकी महत्ता की भूरी भूरी प्रशंसा शिलालेखों तथा साहित्य में दर्ज है। जो संपूर्ण उल्लासकारी इतिहास में सबसे अधिक सौभाग्यशाली जैन तीर्थस्थान रहा और सदियों तक समृद्ध रहा। लगभग 55 शिलालेख इस स्थान पर विद्यमान है और इसमें से लगभग 12 जैनधर्म के हैं। यह महानगर 300 ग्रामों, व्यापार तथा साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से फूला फला था। यह एक शिक्षा का केन्द्र (घटिकास्थान) भी था। पुलिगेरे स्थान का नाम (पुलिकरा, पुरिकरा, पुरिगेरे, पुरिकरनगर और उनका संस्कृतरूप व्याघ्रपुर) लक्ष्मेश्वर के रूप में परिवर्तित हुआ। लगभग 1074 में इस जगह का नाम पुलिगेरे से लक्ष्मेश्वर कर दिया गया था। जो आज भी विद्यमान है। यह नाम महामंडलेश्वर लक्ष्मरस उपनाम लक्ष्मणनृप के नाम पर दिया गया था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org