________________ 70 . धार्मिक-वहीवट विचा साधारण खातेमें जमा नहीं लिया जाता, उसी प्रकार देवद्रव्य पर लगाया जानेवाला सरचार्ज भी साधारण खातेमें लिया नहीं जाता / ... जो लोग उछामनीकी बोली बोलते है, वे अमुक निश्चित रकम बोलनेका मनमें संकल्प करते हैं / उदा., एक हजार रूपयोंको बोलना चाहेगा, और चार रूपयोंका मण घी होगा तो, ढाई सौ मण तककी बोली बोलेगा इस प्रकार उसके एक हजार रूपये देवद्रव्यमें जमा होंगे / जो चार रूप पर एक रूपयेका सरचार्ज डाला गया होगा तो वह मणका भाव पाँच रूपयों हिसाबसे दोसौ मण घीकी बोली बोलेगा / ऐसा होने पर, देवद्रव्यमें उसने 800 रूपये जमा होंगे / इसमें दोसौ रूपयोंका देवद्रव्यको नुकसान होता है; अतः सरचार्ज लिया न जाय / सही बात यह है कि सरचार्ज, प्रिमियर शो आदि द्वारा साधारणमें या उपाश्रय आदिमें रकम एकत्र करनेवाले संघके जो धनिक सज्जन हैं, उनमें औदार्यकी कमी है, यह बात निश्चित होती है / इसके लिए यदि पुण्यशाली व्याख्यानकार धनमूर्छा उतारनेवाली वाणीका प्रभावशाली प्रवाह बहाएँ तो इतनी धनराशि इकठ्ठी हो जाय कि संचालकोंको सरचार्ज आदिका सहारा लेनेकी नौबत ही आने न पाये / उपरान्त, विशिष्ट व्याख्यानकार मुनिलोग साधारणखातेके घाटेवाले स्थलोमें साधारण फंडकी योजना मुख्यतया पेशकर उसीमें ही पर्याप्त रकम एकत्र हो जाय, ऐसा उपदेश देना चाहिए / यदि ऐसे समय भी देवद्रव्यके महत्त्वको मुख्य स्थान देकर, साधारणखातेकी उपेक्षा करनेके लिए समझाया जायेगा तो परिस्थिति ऐसी होगी कि साधारणमें हमेशा घाटा रहा तो देवद्रव्यमें हवाला डालकर देवद्रव्यका भक्षणका भयानक पाप जारी रहेगा / सूद भी जमा करानेकी जहाँ हैसियत न हो, वह संघ अपनी मूडी तो कैसे वापस कर पायेगा ? इसकी अपेक्षा तो साधारणखातेकी आमदानीके स्रोतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए / प्रश्न : (27) देवद्रव्यकी रकमका उपयोग साधारणादि खातेमें हो गया हो तो क्या किया जाय ? उत्तर : यथाशीघ्र पूरे सूदके साथ उस रकमको उस खातेमें वापस जमा करा देनी चाहिए / देवद्रव्यके किसी भी प्रकारके भक्षणको अति भयानक कक्षाका पाप माना गया है / इसीकारण तो संकाश श्रावक अनंत संसारी बन गया /