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________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी रूपमें यह सब कुछ देकर नगद वेतन कम दिया जाता हो, परंपरागत रूपसे पूजारीका उन सारी चीजों पर अधिकार बना रहा हो, तो वे सारी चीजें उसे दे दी जाय / यहाँ उसकी भावनाका प्रश्न है / अधिकारकी बात है, अतः ऐसे स्थल पर देवद्रव्यकी आमदनी करनेका प्रश्न गौण मानना चाहिए / कई लोग कहते हैं कि यदि इस प्रकार फलादि पूजारीको दे देने पडे तो फल रखनेवाले भक्तको चाहिए कि उस फलकी बाजार किंमत जो हो, उतनी रकम भंडारेमें छोड दे / अर्थात् दो रूपयोंका फल रखे और दो रूपये नगद देवद्रव्यके भंडारमें छोडे, यह बात शोभनीय नहीं, क्योंकि इस प्रकार दुगुनी रकमका उपयोग करनेकी नौबत आने पर मध्यवर्गके कई लोग फलार्पण बंद कर देंगे / उपरान्त बिना फल रखे, बदलेमें दो रूपये रखनेकी बात भी उचित नहीं जंचती / फल रखने द्वारा जो भावोल्लास उत्पन्न -महसूस होता है, उसे रूपये रखकर पैदा नहीं किया जा सकता / उपरान्त फलपूजा नामशेष हो जाय / सारी बातोंका मूल्यांकन रूपये-आनोंमें न किया जाय / प्रश्न : (12) देरासरमें समर्पित फल-नैवेद्यका उपयोग किस प्रकार किया जाय ? उत्तर : यदि इन चीजों पर परंपरागतरूपमें पूजारीका अधिकार न हो तो, उन चीजोंकी बिक्रीकर, रकमको देवद्रव्यमें जमा कर दी जाय / __ कई बार इन चीजोंको पूजारी सहित अन्य अजैनलोगोंमें भी वितरित करनी पडती है / कभी कभी तीर्थरक्षादिके लिए अजैन लोगोंकी जरूरत बनी रहती है / ऐसे मौके पर ये चीजें प्रसादके रूपमें वितरितकी जायें / बड़े महोत्सवोंमें अनेक फलफलादि अर्पित होते हैं, यह जैनेतर लोगोंको भी दिया जाय जो वे प्रसन्न रहते है; और संभव है कि हमेशाके लिए वे लोग अभयवचन दें कि, 'चैनकी निंद लें / आपका मंदिर हमारा मंदिर है, उसे जरा भी नुकसान न पहुँचे, उसका सारा उत्तरदायित्व हमारे पर / ' - फलोंके विक्रय द्वारा देवद्रव्यकी जो रकम प्राप्त हो उसकी अपेक्षा . इस अभयवचनकी किंमत बहुत ज्यादा है / फलादिको बेचनेसे शायद वर्षभरमें पाँच-पचीस हजार रूपयोंकी आमदनी हो, लेकिन दूसरे पक्षमें चोरी हो
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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