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________________ धार्मिक-वहीवट विचार चूर कर दी / दूसरी जगह इसी प्रकार क्रुद्ध हुए पूजारीने देरासरमें ही मलमूत्र किये / अन्यत्र ऐसी स्थितिमें गाँवके सारे पूजारियोंने हडताल कर दी, जहाँ अन्तमें ट्रस्टियोंको ही समाधान करना पड़ा। पूजारियोंके संगठन होने लगे है / संगठनवाले गाँवगाँव जाकर पूजारियोंको संगठन-सदस्य बनाते हैं / उनके द्वारा ऊँचे वेतन, आठ घंटोंका काम आदि माँगे रखवाते हैं / उनके पास हडताल कराते हैं / इस प्रकार अनेक प्रकारकी परेशानियाँ कराते हैं / जब इस प्रकारके संगठनोंका सहकार मिले, फिर पूजारी और मुनीम 'कर्ता-हर्ता' (दादा) क्यों न बने ? ___ ऐसी परिस्थितिमेंसे मुक्ति पाना हो तो पूजारियोंके जीवननिर्वाहमेंकोई तकलीफ न आये, उस प्रकार उनके वेतनके स्तर बढाये जायँ / उन्हें पी. एफ., ग्रेज्युइटीका लाभ, बोनस, वार्षिक निश्चित छुट्टियाँ आदि तमाम लाभ-कामदारवर्गको प्राप्य होते हैं वो दे देने चाहिए / यदि मानवको ऐसी सुविधाएँ प्राप्य करा दी जायें, उसके घरेलू लग्नादि महोत्सव और बीमारी आदिके प्रसंगोंमें उसके प्रति सौजन्य और औदार्यके व्यवहार किये जाय तो चोरी करनेसे लेकर तूफान करनेकी वृत्ति तकके प्रसंग उपस्थित न होंगे / संगठनवाले लाखकोशिशें करने पर भी उन्हें बहका नहीं पायेंगे। ___ ऐसा औदार्य दिखाया जाय और कानूनी ढंगसे मिलनेवाले लाभ उन्हें बराबर प्राप्त कराये जायँ, तो कोई आपत्ति न होगी / अन्यथा अल्प वेतन, बारबार अपमान, अधिकतमकार्यबोज आदि होंगे तो पूजारीकेवल आशातनाएँ ही नहीं करेगा, लेकिन उद्धत-उदंड बनेगा, चोर होगा, डकैत बनेगा / क्या नहीं होगा, यही प्रश्न है / यदि भूतकालकी तरह साराकाम श्रावक-श्राविकाओं द्वारा-ही कर लेनेकी व्यवस्थाको पुनर्जीवित कि जायँ तो उपरकी समस्या पैदा होनेका सवाल ही पैदा नहीं होगा / प्रश्न : (11) देरासरके भंडारके चावल, बादाम आदि पूजारीको दे देने ही चाहिए ? ____उत्तर : नहीं, यदि उसे पूरा वेतन दिया जाता हो, आँगी करने पर विशेष पुरस्कर दिया जाता हो तो चावल, बादाम आदिके विक्रय द्वारा उसकी आमदनीको देवद्रव्यके खातेमें जमा करनी चाहिए; लेकिन यदि वेतनके
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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