________________ 60 धार्मिक-वहीवट विचार वहाँसे भी जिनबिम्बोंका उत्थापन करना चाहिए और योग्य स्थान प्रतिष्ठित करने * चाहिए / ऐसे खाली हुए जिनमंदिरोंमें मूलनायक भगवानके स्थान पर मंगलमूर्ति या भगवंतका चित्र रख छोडे, जिससे उस मंदिरमें अजैन लोग हनुमानजी आदिको स्थापना कर उन मंदिरों पर अपना कब्जा न जमा पाये / देशकालके ऐसे आकस्मिक परिवर्तन आ पाते हैं कि पुनः उसी गाँवमें जैनोंकी आबादी शुरू हो जाय / ऐसी स्थितिमें उस जिनमंदिरोमें पुन:प्रतिष्ठा हो / पूर्ववत भव्यातिभव्यता पैदा हो / दूसरी ओर उस प्राचीन स्थलका पूरा ऐतिहासिक महत्त्व हो, राजनीतिक महत्त्व हो, अतः उत्थापन न कर, पूजा आदिकी उचित व्यवस्थ करें / प्रश्न :(८)स्वपद्रव्यकी आमदनी देवद्रव्यमें ही जमा करानी चाहिए, उस बातके लिए शास्त्रीय प्रमाण क्या हैं ? उत्तर : स्वप्र-उछामनि अन्तिम कुछ शताब्दियाँसे प्रचलित होनेसे उसके लिए कोई शास्त्रपाठकी संभावना नहीं है / फिर भी ‘परम्परानुसार एवं जो उछामनि ' 'देवके निमित्त हो उसे देवद्रव्य कहा जाय, ऐसा शास्त्रनियम है / ' तीर्थंकर देवकी माताओंको जो स्पष्ट चौदह स्वप्न द्रष्टिगोचर होते हैं, वे तीर्थंकर देवके निमित्त से आते हैं / अतः स्वप्रकी उछामनि देवद्रव्य बनती है। . - देवद्रव्यके तीन प्रकारमें किस स्वरूपका देवद्रव्य हो ? उस प्रश्नका उत्तर वि.सं. 2044 के वर्षमें संपन्न संमेलनमें गीतार्थ जैनाचार्योंने सर्वानुमतिसे ऐसा दिया है कि वह कल्पित देवद्रव्य माना जाता है / भूतकालमें ऐसी उछामनि थी नहीं; परन्तु अन्तिम दो शताब्दियोंमें यह प्रथा शुरू हुई / 'संबोधप्रकरण' ग्रंथमें पू. हरिभद्रसूरिजी महाराजाने कहा है कि 'जिनभक्ति निमित्त आचरण द्वारा प्राप्त देवद्रव्यको कल्पित देवद्रव्य कहा जाय / ' उस रकमका उपयोग उपर्युक्त बाबतोंके लिए हों एवं जीर्णोद्धारादिमें किया जाय / इस बातको महागीतार्थ जैनाचार्य पू.पाद श्रीमद् सागरानन्दसूरीश्वरजी म.सा. (सुरत आगम मंदिरके संविधान को देखें / ), हमारे तरणतारणहार गुरूदेव स्व. पू. पाद श्रीमद् प्रेमसूरीश्वरजी महाराज साहब (वि.सं.२००७ के वर्षमें उनके द्वारा इसके निमित्त तैयार किये लेखको देखें / ) पू. पाद श्रीमद, रविचंद्रसूरीश्वरीजी म.सा (उनकी प्रश्नोत्तरी पढे) संमति देते है / इस कल्पित देवद्रव्यका दूसरा नाम 'जिनभक्ति साधारण' भी कहा जाय / इस